चलों हम मिलकर कार्य करें

Posted on 09-Oct-2015 11:36 AM




सुधार के लिए दूसरों के भरोसे बैठने के बजाय स्वयं से शुरूआत की जानी चाहिए।
उस दिन कोई ज्यादा भीड़ नहीं थी। बस, हम 8-10 जने ही वही रोज-रोज की बातें, जान-पहचान करते चले अपने-अपने मुकाम पर पहुंचने के लिए। तभी गाड़ी की चाल कम हुई। शायद, स्पष्ट संकेत नहीं मिलने से चालक को स्टेशन से पहले गाड़ी रोकनी पड़ी। एक साहब ने बाहर नजरें दौड़ाते हुए अपने साथी से कहा, देखो तो कितनी गाजर घास हो रही है। आसपास के किसान थोड़ा समय निकालकर गाजर घास भी उखाड़े दें, तो सफाई भी हो जाए और देश सेवा भी। सामने बैठे ग्रामीण को यह बात मन में लगी। बोला, साहब, किसान अपने ही खेत की खरपतवार निकालते हुए अधमरा हो जाता है, तो यह रेल की पटरी की घास कब उखाड़ेगा? साहब कुछ झेंपे जरूर, पर शिक्षा के दम्भ ने उन्हें पीछे हटने नहीं दिया। बोले, नहीं-नहीं, वो क्या है कि मानवता के नाते ही सही। 
वह आदमी बोला, साहब, बुरा न मानें तो एक बात कहूं?
साहब, हां-हां, क्यों नहीं?
आदमी, साहब, मानव तो आप भी हैं। चलो हम दोनों उतरकर गाजर घास उखाडें और करें देश सेवा।


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