पिण्डवाड़ा की पीड़ा

Posted on 15-May-2015 12:23 PM




मई, 1976 सिरोही जिले के पिण्डवाड़ा में भयंकर बस-ट्रक दुर्घटना। ”खबर मिलते ही ’मन’ विचलित हो उठा। मैं तत्क्षण निकल पड़ा छुट्टी लेकर दुर्घटना स्थल पर। मेरी कल्पना से ज्यादा स्थिति भयानक थी। तब तक रोगियों को पिण्डवाड़ा के छोटे अस्पताल में लाया जा चुका था।“ कहाँ पलंग ? कहाँ बिस्तर ? बस लिटा दिया-बरामदे मंे। छोड़ दिया उनकी किस्मत पर।
43 घायलों के बीच नर्स भी एक ही थी और स्थिति बिगड़ती जा रही थी। घायलों का खून रूक नहीं रहा था। वहाँ के स्थानीय व्यक्तियों के सहयोग से मेटाडोर की गई। सिरोही के हाॅस्पीटल में ले जाने के लिए उठाने लगे, तो दिवार बन गये-दो सिपाही। कहने लगे-”दुर्घटना स्थल पर गये डाॅ. साहब की आज्ञा बिना नहीं ले जा सकते-आप इन्हें।“ मैं सिहर गया। आखिर ’मौत’ पर भी आज्ञा। ”मेरे रोंगटे खड़े हो गये-उनकी हृदयहीनता देखकर।“............ अनुनय विनय के बाद हम घायलों को सिरोही हाॅस्पीटल ले गये। 5 दिन लगातार रहा हाॅस्पीटल में-मैं।
बाद में प्रतिदिन एक-दो घण्टा उन घायलों को मिलने जाता रहा।................ एक ऐसा क्रम जो मेरे शौक में बदल गया और 1976 से आज तक यही क्रम चल रहा है।
- कैलाश ’मानव’ ‘पद्मश्री अलंकृत’


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