सम्पादकीय 04 अगस्त

Posted on 04-Aug-2015 03:38 PM




फोन की घंटी बजी............दूसरी ओर से आवाज आयी! भाई सा, जनरल हाॅस्पीटल के कम्पाउण्ड में एक अज्ञात व्यक्ति मूर्छित अवस्था में मल-मूत्र से सना पड़ा है। लावारिश एवं अचेतन अवस्था में होने के कारण हाॅस्पीटल स्टाफ एवं अन्य कोई भी इस बेसहारा की ओर ध्यान नहीं देता। लगभग एक सप्ताह से यह इसी जगह पड़ा है.....! न कुछ खाया और न ही पीया, पता नहीं किस वजह से अभी तक अपना शरीर नहीं छोड़ पाया है-यह दुःखिया। आप अगर इसे यहाँ से ले जायेंगे तो बड़ा पुण्य होगा..... और इस सूचना के साथ फोन का सम्बन्ध विच्छेद हो गया-दूसरी ओर से। तत्क्षण संस्था साधक श्री नानाभाई अपने एक बन्धु के साथ संस्था वाहन लेकर जनरल हाॅस्पीटल पहुँचे! वहां का दृश्य कुछ और ही था। मानव रूप में देव आत्मा से जो सभ्य समाज द्वारा घृणा की जा रही थी, वह पहली बार देखा तो ताज्जुब हुआ कि वाह रे मानव, मानव कहलाने वाले जीव से भी तेेरी यह घृणा! 20 फीट दूर से ही मल-मूत्र की बदबू का झौंका राहगीरों को अपनी गिरफ्त में ले लेता। आने जाने वाले मुंह फेर कर नाक दबाएं हुए निकल जाते थे। करत करत अभ्यास के..........ऐसे दुःखी लोगों के निरन्तर सम्पर्क ने इन साधकों को भीड़ से अलग कर दिया, उसे जाकर अपने हाथों से एक ओर लिटाया और जुट गये उसके शरीर की सफाई में। ऐसा लग रहा था जैसे साक्षात् कृष्ण सुदामा के चरण धो रहे हो। कपड़े तो यहां से पहले से ही गाड़ी में रख लिए थे, तुरन्त नये कपड़े पहनाकर उन्हें उठाकर गाड़ी में लिटाया गया, और चल पड़े सेवाधाम की ओर।
गत दिनों की भूख और प्यास ने उसके शरीर को निचोड़ कर रख दिया था, अशक्तता और कमजोरी की वजह से करवट भी नही बदल पाया था, तभी तो पीठ और गुटनों में पड़ गये थे, गहरे घाव। संस्थान द्वारा अन्न और पानी की कमी को पूरा करने के लिए ग्लूकोज चढ़ा दिया गया, और आवश्यक दवाइयाँ भी की गई प्रारंम्भ। मात्र पांच दिन की सेवा से कुछ बड़बड़ाया। प्रश्न उठा‘‘ कंई नाम है भाया थारो‘‘ होंठ हिले और हल्की सी हरकत जिसने शब्द दिया‘ उरजन अर्थात् अर्जुन। प्रश्न पुनः गहराया पिता रो नाम? उत्तर मिला भीमा। अन्य प्रश्न कई उभरे, लेकिन होठों के अन्दर ही रह गये सभी प्रश्नों के जवाब। कुछ दिनों की सेवा इन सब प्रश्नों के जवाब अवश्य दे गई। कम दिनों में जो सुधार उसके शरीर में हुआ उससे हमारी उम्मीदें बढ़ी है। सभी साधक यही मानकर इस यज्ञ में दे रहे हैं आहुति कि:-
यहाँ से ईश्वर तो है बहुत दूर, चलो यूं ही करे।
किसी गरीब बेसहारा का सहारा तो बने।।


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