सम्पादकीय 10 जुलाई

Posted on 10-Jul-2015 12:55 PM




यह विचार खास तौर पर, उन महानुभावों के सामने रखा जा रहा है, जो सेवा के महत्त्व से तो भलीभांति परिचित है ही, परन्तु वे उस शुभ मुहुर्त की प्रतिक्षा में हैं, जब वे सेवा का यज्ञ प्रारम्भ कर सके, या ऐसे व्यक्ति की तलाश में है जो इनकी सेवा पाने का अधिकारी है।
आदरणीय, आपश्री जानते हैं कि दुनियां में विरले ही लोग होंगे जो ये बता सकें कि उनको कौनसी व्याधि कब घेर लेगी? हमारी आंखों के सामने हर उम्र के हजारों-लाखों परिचित अपरिचित लोग अपनी इच्छाओं को मन में लिये हुए ही इस दुनिया से कूच कर जाते हैं, और उनमें से कई ऐसे भी होते हैं जिनमें आप ही की तरह सेवा करने की तीव्र अभिलाषा थी, और वे उपयुक्त समय और व्यक्ति का इन्तजार कर रहे थे। संकेत आपश्री समझे ही होंगे। मृत्यु जीवन का एकमात्र सत्य है, धु्रव सत्य।
माननीय, हम जानते ही हैं, लक्ष्मी चंचल होती है। आज वो आपके आँगन में हंसी खुशी से खेल रही है, और भगवान न करे, कल रूठ जाये तो? आप तो सही आदमी और सही समय का इन्तजार ही करते रह गये न?
इसलिये जिस क्षण हमारे मन में सेवा करने का विचार उत्पन्न हुआ, वही क्षण सबसे उत्तम है। प्रतीक रूप से मान लीजिये आपके पास एक रोटी है, और आप सोचते हैं, जब मेरे पास दो रोटी हो जायेगी तब मैं एक रोटी उस भूखे बच्चे को दे दूंगा, संयोगवश आपकी वो रोटी भी कुत्ता छीन ले गया, तब?
आज आपके पास एक रोटी है तो आप उसमें से एक कौर दे दीजिये। कल जब आपके पास दो रोटी हो तो पूरी एक दे दें।
सेवा में भावना का महत्त्च है- मात्रा का नहीं।
जी हाँ, श्रद्धेय, इन दिनों आपका स्वास्थ्य ठीक नहीं है, तो सेवा का कोई ऐसा कार्य चुन लीजिये, जिसमें शारीरिक श्रम ज्यादा न करना पड़े, पर अनिश्चित जीवन के बेश कीमती समय को व्यर्थ न गंवाइये।


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