सम्पादकीय 18 जुलाई

Posted on 18-Jul-2015 04:28 PM




मन-वचन-काय तीनों के प्रयास संयत हों। संयत प्रयास ही जीवन में संतुलन बनाते हैं। यही संतुलन आदमी को निश्चिन्त बनाता है। निश्चिन्त होना ही ध्यान है। ध्यान एकाग्रता का नाम है, एकाग्रता है तो स्थिरता है और स्थिरता ही जीवन की सफलता है।
प्रयास करो कि जीवन इतना संतुलित हो कि हमें निश्चिन्त होने के लिए अलग से चिंता मुक्त होने के उपाय न खोजने पड़ें।
आप जो भी करें पूरी लगन और उत्साह से करें।

पढ़ो तो मन लगाकर पढ़ो, पूरे विश्वास और लगन से पढ़ो। खेलो तो पूरे उत्साह से और आनन्द से खेलो। दोस्तों से मिलो तो मन से मिलो, किसी की सहायता करो तो लगन से करो, संगीत तो तन्मय होकर सुनो। प्रत्येक कार्य सावधानी से करो। जहाँ सावधानी है वहाँ आलस्य रह नहीं सकता। सावधानी का अर्थ ही एकाग्रता है, ध्यान है।
भगवान् महावीर ने इसीलिए कहा कि-
मानसिक, वाचनिक और कायिक प्रत्येक चेष्टा/क्रिया को ध्यान से करो।

आप कर कुछ रहे हैं और सोच कुछ रहे हैं तो आप तुरन्त सोचों कि हम चिंता में हैं, ध्यान में नहीं। अपने विचार को उसी समय रोककर उस समय जो कार्य कर रहे हैं, उसी में लगा दो, बाद में अन्य कार्य में लग जाओ। हमारे मस्तिष्क में चिंता का स्तर कितने प्रतिशत है, आप इस तरह अपने बारे में सोचकर उसे समझ सकते हैं। यह प्रतिशत घटना चाहिए। यदि यह प्रतिशत बढ़ता रहा और आप इसे नियन्त्रण करने में असावधान रहे तो मस्तिष्क और हृदय संबंधी अनेक बीमारियाँ बहुत जल्द आपके ऊपर राज करने लगेंगी।
ध्यान रहे निश्चित और शांत मन ही किसी समस्या को हल करने का समाधान खोज सकता है।
इसके विपरीत होता यह है कि समस्या आने पर मन चिंतित और दुःखी हो जाता है ऐसी स्थिति में समाधान कौन करे?उसे तो हमें स्वयं ही करना होगा। इसलिए प्रयत्न करो कि कोई भी समस्या दिमाग पर इतनी हावी न हो कि दिमाग समाधान करने लायक ही न रहे। 


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