सम्पादकीय 25 मई

Posted on 25-May-2015 03:01 PM




काम कोई छोटा या बड़ा नहीं होता। दूसरों की सेवा करना, असहाय को सहारा देना, मानवता की दृष्टि से बहुत बड़े काम हैं। आपकी सेवा से किसी को सुख मिलता है, आराम मिलता है, शान्ति मिलती है, तो यह ईश्वर की ही सेवा है, ईश्वर की ही पूजा है, क्योंकि जिस आत्मा को, जिस जीवन को आपकी सेवा से सुख मिलता है- वह जीवन, वह आत्मा उसी परमपिता परमात्मा का अंश है। हमारे वेद, उपनिषद्, पुराण सब यही तो कहते हैं कि प्राणी मात्र में ईश्वर का अंश है, ईश्वर का निवास है।
सेवा जैसा शुभ कार्य, ईश्वरीय कार्य प्रारम्भ करने के लिए किसी मुुहूर्त या चैघडि़या देखने की कहाँ आवश्यकता है ? आप द्वारा की गई सेवा से आप ही तो लाभ पाने वाले हैं। सेवा का प्रतिफल यश, सौभाग्य, आयुष और पुण्य आप ही को तो मिलने वाला है, अतः इसमें देर करना उचित नहीं। आप जितना जल्दी करेंगे, आपके भाग्य का उतना ही जल्दी उदय होगा, उतनी ही जल्दी आप पर प्रभु की कृपा बरसेगी।
हो सकता है सेवा के काम में शुरू-शुरू में कोई अड़चन, कोई रूकावट मार्ग में आए पर उसमें डरना, घबराना नहीं, यह तो ईश्वर द्वारा ली जा रही परीक्षा हो सकती है इसलिए सेवा के मार्ग से कभी विमुख नहीं होना। पीडि़त और असहाय बन्धुओं की सेवा किसी भी रूप में की जा सकती है। आप तन से, मन से, धन से, वाणी से और कुछ नहीं तो अपनी मुस्कराहट देकर दूसरों के दुःख को कम कर सकते हैं, मिटा सकते हैं। आपके पास जो कुछ भी है उसका थोड़ा सा अंश प्रभु के चरणों में नैवेद्य की तरह पीडि़तों, विकलांगों की सेवा में अर्पित कर दें, आप शीघ्र ही पाएँगे कि पीडि़तों की सेवा के लिए इस नैवेद्य के बदले में ईश्वर आप पर प्रसाद की वर्षा कर रहा है।
आप तो बस एक काम कीजिए, इसी क्षण प्रतिदिन सेवा करने का व्रत ग्रहण कीजिए और फिर देखिये आपके जीवन मंे होने वाले शुभ चमत्कार।


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