सम्पादकीय 30 जुलाई

Posted on 30-Jul-2015 03:20 PM




आप स्वयं को आदर तभी दे पाएँगे, जब आप यह जान पाएँगे कि मैं कौन हूँ? ’मुझे अपने आपको जानना चाहिए, तभी मैं खुश रह पाऊँगा वरना मेरा विकास कैसे होगा?’ आप में स्वयं के प्रति आदर है तो आप जल्द से जल्द सत्य जानना चाहेंगे। स्वयं का आदर करना बहुत मुख्य बात है क्योंकि लोगों के साथ अच्छे व्यवहार की शुरूआत यहीं से होती है। स्वयं को आदर देने वाला इंसान गलतियों से बचने का रास्ता ढूँढ़ना चाहेगा। वह कभी नहीं चाहेगा कि उसकी आजादी छिन जाए। वह हर काम बिना गलती के करना चाहेगा।
इंसान जब पहले अपने आपको आदर देना सीखेगा तभी वह दूसरों को भी आदर दे पाएगा, लेकिन शुरूआत में ही उसका मूल अहंकार नहीं टूटेगा। शुरू में ही कोई अपने आपको नहीं जान सकता । स्वयं के प्रति आदर है तो शुरूआत कुछ अच्छी बातों को विकसित करने से होगी। जैसे- ’ मुझे अच्छी शिक्षण पद्धति ग्रहण करनी चाहिए... मुझे सही लोगों के साथ उठना - बैठना चाहिए क्योंकि मैं अपने आपको दुनिया की बेहतरीन चीजें देना चाहता हूँ।  मगर इसमें भी सूक्ष्मता है क्योंकि यहाँ आदर, अहंकार में बदलने की संभावना होती  है। 
यदि दूसरों को आदर देते-देते सामने वाले ने आपको चोट पहुँचाई तो उसके प्रति नफरत शुरू होने की संभावना है, जो आदर के बिलकुल विपरीत है। यह नफरत आपके अहंकार को चोट पहुँचने की वजह से उत्पन्न होगी। इसमें यह भी धोखा है कि अब आप चिढ़कर कहेंगे, ’आदर अभी बाजू में रखो, पहले उसे सबक सिखाया जाए।’
इस तरह कब आदर अहंकार में घुल-मिल जाता है आपको पता ही नहीं चलता। पहले जब कोई सुनता है कि अहंकार नहीं रखना चाहिए तो वह अपने प्रति आदर भी कम कर देता है। तब उसे कहा जाता है कि ’ आदर कम मत करें, यह आगे सेल्फ रियलाइजेशन में काम आएगा। आप किसी से न कम हैं न ज्यादा हैं।  आप जो भी है उसे आदर देना शुरू करें। स्वयं को आदर देते-देते आप सत्य के करीब पहुँच जाएँगे।’ आदर ही घृणा और अहंकार को तोड़ने में मदद करता है। इसलिए सही ढंग से अपने आपको आदर दें, यह आत्म सम्मान है, स्वयं का सच्चा सम्मान है।


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