तुलसी है विष्णु प्रिया

Posted on 18-Jun-2016 11:23 AM




भगवान विष्णु की पूजा को तुलसी पत्र के बिना अधूरा माना जाता है. बिना तुलसी के श्री हरि को भोग नहीं लगता. क्या आपने कभी सोचा है कि लक्ष्मीपति के लिए इस पौधे का इतना महत्व क्यों है? प्राचीन काल में जलंधर नाम का राक्षस था. उसने सम्पूर्ण धरती पर उत्पात मचा रखा था. राक्षस की वीरता का राज था उसकी पत्नी वृंदा का पतिव्रता धर्म कहा जाता है कि उसी के प्रभाव से वह हमेशा विजय होता था। जलंधर के आतंक से परेशान होकर ऋषि-मुनि भगवान विष्णु के पास पहुंचे। भगवान ने काफी सोच विचार कर वृंदा का पतिव्रता धर्म भंग करने का निश्चय कियाउन्होंने योगमाया से एक मृत शरीर वृंदा के घर के बाहर रखवा दिया। माया का पर्दा होने से वृंदा को अपने पति का शव दिखाई दिया। अपने पति को मृत जानकर वह उस मृत शरीर पर गिरकर रोने लगी। उसी समय एक साधु उसके पास आए और कहने लगे, बेटी इतनी दुःखी मत हो. मैं इस शरीर में जान डाल देता हूं। साधु ने उसमें जान डाल दी. भावों में बहकर वृंदा ने उस शरीर का आलिंगन कर लिया. उधर, उसका पति जलंधर, जो देवताओं से युद्ध कर रहा था, वृंदा का सतीत्व नष्ट होते ही मारा गया। बाद में वृंदा को पता चला कि यह तो भगवान का छल है. इस बात का जब उसको पता चला तो उसने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि जिस प्रकार आपने छल से मुझे पति वियोग दिया है। उसी तरह आपको भी स्त्री वियोग सहने के लिए मृत्युलोक में जन्म लेना होगा। यह कहकर वृंदा अपने पति की अर्थी के साथ सती हो गई। इस घटना के बाद त्रैतायुग में भगवान विष्णु ने भगवान राम के रूप में अवतार लिया और सीता के वियोग में कुछ दिनों तक रहना पड़ा। यह भी कहा जाता है कि वृंदा ने विष्णु जी को यह श्राप दिया था कि तुमने मेरा सतीत्व भंग किया है। अतः तुम पत्थर के बनोगे और वही श्री हरि का शालिग्राम रूप है। इसके बाद वृंदा अपने पति के साथ सती हुई. तब भगवान श्रीविष्णु ने कहा-‘‘हे वृंदा! मैं तुम्हे वरदान देता हूँ की तुम तुलसी बनकर सदा मेरे साथ ही रहोगी’’,तब जिस जगह वह सती हुई वहां तुलसी का पौधा उत्पन्न हुआ. तथा भगवान के आशीर्वाद के फल स्वरूप भगवान के साथ पूजनीय हुआ।


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