खूब लड़ी मर्दानी वह तो

Posted on 28-Aug-2015 11:20 AM




रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवंबर, 1828 को काशी के असीघाट, वाराणसी में हुआ था। इनके पिता का नाम मोरोपंत तांबे और माता का नाम ’भागीरथी बाई’ था। इनका बचपन का नाम ’मणिकर्णिका’ रखा गया परन्तु प्यार से मणिकर्णिका को ’मनु’ पुकारा जाता था।
मनु जब मात्र चार साल की थीं, तब उनकी मां का निधन हो गया। पत्नी के निधन के बाद मोरोपंत मनु को लेकर झांसी चले गए। रानी लक्ष्मीबाई का बचपन उनके नाना के घर में बीता, जहां वह ”छबीली“ कहकर पुकारी जाती थी। जब उनकी उम्र 12 साल की थी, तभी उनकी शादी झांसी के राजा गंगाधर राव के साथ कर दी गई। उनकी शादी के बाद झांसी की आर्थिक स्थिति में अप्रत्याशित सुधार हुआ। इसके बाद मनु का नाम लक्ष्मीबाई रखा गया।
अश्वारोहण और शस्त्र- संधान में निपुण महारानी लक्ष्मीबाई ने कुछ समय बाद एक पुत्र को जन्म दिया, पर कुछ ही महीने बाद बालक की मृत्यु हो गई। पुत्र वियोग के आघात से दुःखी राजा ने 21 नवंबर, 1853 को प्राण त्याग दिए। झांसी शोक में डूब गई। अंग्रेजों ने अपनी कुटिल नीति के चलते झांसी पर चढ़ाई कर दी।
14 मार्च, 1857 से आठ दिन तक तोपें किले से आग उगलती रहीं। अंग्रेज सेनापति हयूरोज लक्ष्मीबाई की किलेबंदी देखकर दंग रह गया। रानी रणचंडी का साक्षात रूप रखे पीठ पर दत्तक पुत्र दामोदर राव को बांधे भयंकर युद्ध करती रहीं। झांसी की मुट्ठी भर सेना ने रानी को सलाह दी कि वह कालपी की ओर चली जाएं। झलकारी बाई और मुंदर सखियों ने भी रणभूमि में अपना खूब कौशल दिखाया। अपने विश्वसनीय चार-पांच घुड़सवारों को लेकर रानी कालपी की ओर बढ़ीं। अंगे्रज सैनिक रानी का पीछा करते रहे। कैप्टन वाकर ने उनका पीछा किया और उन्हें घायल कर दिया।
22 मई, 1857 को क्रांतिकारियों को कालपी छोड़कर ग्वालियर जाना पड़ा। 17 जून को फिर युद्ध हुआ। रानी के घायल होते हुए भी उन्होंने उस अंग्रेज सैनिक का काम तमाम कर दिया और फिर अपने प्राण त्याग दिए। 18 जून, 1857 को बाबा गंगादास की कुटिया में जहां इस वीर महारानी ने प्राणांत किया वहीं चिता बनाकर उनका अंतिम संस्कार किया गया। रानी लक्ष्मीबाई ने कम उम्र में ही साबित कर दिया कि वह न सिर्फ बेहतरीन सेनापति हैं बल्कि कुशल प्रशासक भी हैं।
झांसी की महान वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई वह आदर्श हैं उन सभी महिलाओं के लिए जो खुद को बहादुर मानती हैं और उनके लिए भी एक आदर्श हैं जो महिलाएं सोचती है कि वह महिलाएं हैं तो कुछ नहीं कर सकती। देश के पहले स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के अप्रतिम शौर्य से चकित अंग्रेजों ने भी उनकी प्रशंसा की थी।  


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