जानिये पेशियों का कार्य

Posted on 07-Jul-2015 03:20 PM




  1. पेशियाँ दो प्रकार की होती हैं:- इच्छाधीन और स्वाधीन।
  2. स्वाधीन पेशियाँ स्वतः सिकुड़ती और फैलती हैं। इसलिए स्वाधीन पेशियों वाले अंगों  मंे स्वतः गति उत्पन्न होती है।
  3. इच्छाधीन पेशियाँ हमारी इच्छानुसार काम करती हैं।
  4. इच्छाधीन पेशियों का बीच वाला भाग अपेक्षाकृत मोटा और किनारे पतले होते हैं। 
  5. इच्छाधीन पेशी का एक सिरा एक अस्थि से और दूसरा सिरा दूसरी अस्थि से जुड़ा होता है।
  6. पेशियाँ कण्डराओं के सहारे अस्थियों से जुड़ी होती हैं।
  7. पेशियों के सिकुड़ने से अस्थियाँ एक दूसरे के पास आ जाती हैं।

पेशियों का कार्य - जब पेशियाँ अपने विशेष गुण के कारण सिकुड़ने लगती हैं तो दोनों अस्थियाँ एक दूसरे के पास आ जाती हैं अर्थात् जब पेशियाँ सिकुड़ती हैं, तो अपने साथ उस अस्थि को भी उठा लेती है, जो उस संधि स्थल पर अधिक घूमने वाली होती है। द्विशिरस्का के सिकुड़ने से उदर का भाग, द्विशिरस्का का मोटा हो जाता है। इस स्थिति में यह पूर्णतया तनी रहती हैं। पुनः जब त्रिशिरस्का में संकुचन होता है तो द्विशिरस्का अपनी पूर्व स्थिति में आ जाती है। बाजू भी पूर्व स्थिति में आ जाती है। इस प्रकार पेशियों के संकुचन गुणों के कारण ही अंग-प्रत्यंग गतिशील होते हैं। ये पेशियाँ जब कार्यरत् होती हैं तो इनमें संचित ग्लाइकोज़न, वसा आदि का हृास होता है। इस क्रिया से ताप की भी उत्पत्ति होती है। छोटी से छोटी गति होने मंे कम से कम दो पेशियाँ का कार्य हैं जो कि एक दूसरे के विपरीत दिशा में काम करती हैं, अर्थात् एक फैलती और दूसरी संकुचित होती है।

पेशियों का कार्य - जब पेशियाँ अपने विशेष गुण के कारण सिकुड़ने लगती हैं तो दोनों अस्थियाँ एक दूसरे के पास आ जाती हैं अर्थात् जब पेशियाँ सिकुड़ती हैं, तो अपने साथ उस अस्थि को भी उठा लेती है, जो उस संधि स्थल पर अधिक घूमने वाली होती है। द्विशिरस्का के सिकुड़ने से उदर का भाग, द्विशिरस्का का मोटा हो जाता है। इस स्थिति में यह पूर्णतया तनी रहती हैं। पुनः जब त्रिशिरस्का में संकुचन होता है तो द्विशिरस्का अपनी पूर्व स्थिति में आ जाती है। बाजू भी पूर्व स्थिति में आ जाती है। इस प्रकार पेशियों के संकुचन गुणों के कारण ही अंग-प्रत्यंग गतिशील होते हैं। ये पेशियाँ जब कार्यरत् होती हैं तो इनमें संचित ग्लाइकोज़न, वसा आदि का हृास होता है। इस क्रिया से ताप की भी उत्पत्ति होती है। छोटी से छोटी गति होने में कम से कम दो पेशियाँ का कार्य हैं जो कि एक दूसरे के विपरीत दिशा में काम करती हैं, अर्थात् एक फैलती और दूसरी संकुचित होती है।

संकुचित होना और फैलना -जो पेशियाँ अपने संकुचन गुणों के कारण अंगों को समीप लाती हैं उसे संकुचक (फ्लेक्सर) कहते हैं, जबकि ऐसी पेशियों को जो अपने फैलने के गुणों के कारण अंगों को दूर हटाती है उन्हें प्रसारक या एक्सटेन्सर्स कहते हैं।

अन्तर्नयन और बहिर्नयन- जिस क्रिया द्वारा अंगांें को शरीर की मध्य रेखा की ओर खींचती हैं, उसको अन्तर्नयन कहते हैं। इसके विपरीत जिस क्रिया द्वारा अंगों को शरीर की मध्य रेखा से दूर हटाता हैं उसे बहिर्नयन कहते हैं।
घर्णक- जो पेशियाँ अंगों को घुमान का काम करती हैं उनको पेशियाँ घर्णक कहते हैं।


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