योग-रोगोपचार की आध्यात्मिक कला

Posted on 16-May-2016 05:24 PM




योग पौराणिक काल से ही भारतीय संस्कृति का हिस्सा रहा है। वेदों के अनुसार हमारा शरीर पंच तत्वों से मिलकर बना है। पृथ्वी यानि मिट्टी, वायु, जल, आकाश और अग्नि। ये पांच तरह के तत्व वैज्ञानिक भाषा में योगिक जो की अनेकों तत्वों के संयोग से बने होते हैं। इस सारी सृष्टि में जितने भी पदार्थ हैं और जिस अनुपात में हैं वे सारे पदार्थ उतने ही अनुपात में हमारे शरीर में विद्यमान हैं। उदाहरण के लिए जैसे सृष्टि में 30ः थल (ठोस) और 70ः जल है तो हमारे शरीर के भार में भी 70ः जल और 30ः ठोस पदार्थ है और ये वैज्ञानिक आधार पर भी प्रमाणित है। इसी प्रकार से अन्य तत्व भी सृष्टि में मौजूद अनुपात अनुसार ही हमारे शरीर में भी मौजूद हैं। यानि कि हमारा शरीर एक लघु सृष्टि ही है। फर्क सिर्फ इतना है कि सृष्टि में मौजूद तत्व कभी भी समाप्त नहीं होते केवल अवस्था परिवर्तन करते हैं और हमारा शरीर भी उसी अवस्था परिवर्तन का परिणाम है। जो समय के साथ बनता है और समाप्त हो जाता है।
वेदों की दूसरी व्याख्या के आधार पर लें तो सारी सृष्टि एक परमात्मा यानि परम आत्मा के द्वारा संचालित है या यों कहें कि सारी सृष्टि एक शरीर है जिसमें एक आत्मा विद्यमान है उसे ही हम परमात्मा कहते हैं। तथा जो उसका संचालन करती है। ऐसे ही हमारे शरीर में सृष्टि के सारे तत्व मौजूद हैं और हमारा शरीर भी सूक्ष्म आत्मा के द्वारा संचालित है। यानि कि हमारा शरीर अपने आप में एक लघु सृष्टि है अर्थात हमारी आत्मा भी उस परमात्मा का एक अंश है। अर्थात हमारे शरीर में वे सारी शक्तियां मौजूद हैं जो कि इस सृष्टि में मौजूद हैं। लेकिन हमारी अज्ञानतावश वे सारी शक्तियां सुप्तावस्था में पड़ी हैं।
वेदों के अनुसार सृष्टि के रचयिता अथवा संचालन कर्ता उस परमात्मा का नाम शिव है और जिसमें शक्ति के रूप में नारी समायी है इसलिए उसका एक नाम अर्धनारीश्वर भी है। जिसे अन्य सम्प्रदायों में अन्य नामों से संबोधित किया जाता है। सर्वप्रथम उसने त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और शंकर के रूप धारण किये और तीनों को अलग अलग कार्य सौंपे। ब्रह्माजी को सृष्टि की रचना का कार्य मिला विष्णु को उसके पालन पोषण और संरक्षण का दायित्व मिला तथा शंकर को कर्मों के अनुसार फल देने का कार्य मिला।
इसी के आधार पर अगर हम योग की व्याख्या करें या योग उस परमात्मा की परमशक्ति को मानें यानि सम्पूर्ण योग साधना से हम अपने अन्दर छुपी प्राकृतिक दैवीयशक्ति को जगा सकते हैं। उस परमात्मा के तीन स्वरूपों अनुसार ही योग के तीन स्वरुपों की विभिन्न क्रियाओं के द्वारा अंदरूनी शक्ति को जागृत किया जा सकता है, योग के निम्न तीन स्वरुप हैं जो अनेकों प्रकार की क्रियाओं के मेल से बनी होती हैं।
1- प्राणायम,
2- आसन,
3- ध्यान,
प्राणायाम से हम अपने अंदरूनी शक्ति को जगाकर शरीर में मौजूद तत्वों के संतुलन को बरकरार रखकर बीमारियों से बच सकते हैं। आसनों से शारीरिक शक्ति को जगाकर हम अपने शरीर को मजबूत और सुडौल बना सकते हैं और ध्यान से मानसिक शक्ति को जागृत कर इस सृष्टि के अनेकों रहस्यों के बारे में ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं तथा खुद को स्वस्थ रखकर एक खुशहाल जीवन व्यतीत कर सकते हैं। वर्षों पहले हमारे ऋषि-मुनि और राजा लोग इसी योगविद्या से हजारों वर्षों तक स्वस्थ रहकर जीवित रहते थे। तथा अनेकों दैवीय शक्तियों से परिपूर्ण हुआ करते थे। तथा स्वच्छ होकर चौदह भुवनों (जीवन से परिपूर्ण सौर मंडल) में विचरण किया करते थे। जिसका कि हमारे वेदों में वर्णन है और विज्ञान जिनकी खोज में लगा है।के अनेकों रहस्यों के बारे में ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं तथा खुद को स्वस्थ रखकर एक खुशहाल जीवन व्यतीत कर सकते हैं। वर्षों पहले हमारे ऋषि-मुनि और राजा लोग इसी योगविद्या से हजारों वर्षों तक स्वस्थ रहकर जीवित रहते थे। तथा अनेकों दैवीय शक्तियों से परिपूर्ण हुआ करते थे। तथा स्वच्छ होकर चौदह भुवनों (जीवन से परिपूर्ण सौर मंडल) में विचरण किया करते थे। जिसका कि हमारे वेदों में वर्णन है और विज्ञान जिनकी खोज में लगा है।अनेकों दैवीय शक्तियों से परिपूर्ण हुआ करते थे। तथा स्वच्छ होकर चौदह भुवनों (जीवन से परिपूर्ण सौर मंडल) में विचरण किया करते थे। जिसका कि हमारे वेदों में वर्णन है और विज्ञान जिनकी खोज में लगा है।


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