दुःख विलिन हो जाएगा

Posted on 15-Jun-2015 04:32 PM




इंसान का बाहरी शरीर तो सभी को दिखाई देता है लेकिन उसकी नींव यानी उसका चरित्र कैसा है, यह बाहर से पता नहीं चलता। जैसे पुस्तक का सिर्फ कवर देखकर उसका महत्व नहीं बताया जाएगा बल्कि उसके अंदर जो लिखा हुआ, जो छपा हुआ और जो छिपा है, वही ज्यादा काम में आता है। अर्थात बाह्म स्वरूप देखकर कोई जान नहीं सकता कि उसके अंदर क्या है। इसलिए जो अंदर है, उसे बाहर दिखाने के लिए ईश्वर की मूर्ति बनाई गई। ईश्वर के अंदर जो है, उसे मूर्ति के रूप में बाहर दर्शाया गया। यह तो कृपा है कि जो अंदर है, जो इंसान को समझ में नहीं आएगा, उसे मूर्तियों के रूप में बाहर लाया गया है। इस बात को भगवान शिव के उदाहरण से समझें। शिव का तीसरा नेत्र, सिर पर चाँद, गंगा बह रही है, नीलकंठ ये सब संकेत हैं। इनके द्वारा इंसान की आंतरिक अवस्था बताने की कोशिश की गई है। ज्ञान की गंगा आंतरिक अवस्था है, जो बता रही है कि अंदर कौन सा ज्ञान है। समझ का नेत्र बता रहा है कि जीवन की हर घटना को तीसरे नेत्र से देखना सीखें। यह ईश्वर का गुण है। ईश्वर सभी को एक ही नजर से देख रहा है। आप किसी को देख रहे हैं तो अपने आपसे पूछें कि ’मैं कहाँ से देख रहा हूँ ?’ यदि आप तीसरे नेत्र से देखेंगे तो दुःख विलिन हो जाएगा। 


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