दुःख

Posted on 06-May-2015 10:52 AM




केवल एक ही बात याद रखो कि तुम कितने सौभाग्यशाली हो। जब तुम यह भूल जाते हो, तब तुम दुःखी हो जाते हो। दुःख तुम्हारे नकारात्मक मनोभावों को और अपने गुणों के प्रति तुम्हारे अत्यधिक लगाव को इंगित करता है। जब तुम अपने को योग्य नहीं समझते, तुम स्वयं को दोषी ठहराते हो और दुःखी होते हो। जब तुम अपने को बहुत योग्य समझते हो, तब संसार को दोषी ठहराने लगते हो और फिर दुःखी हो जाते हो। दुःख का उद्देश्य है तुम्हें आत्मा के पास वापस लाना। आत्मा आनन्दमय है परन्तु यह अनुभूति केवल ज्ञान के द्वारा सम्भव है। ज्ञान (या सचेतनता) दुःख को आत्मा की ओर ले जाता है। ज्ञान का अभाव उसी दुःख को कई गुना बढ़ा देता है और उस दुःख का कभी अन्त नहीं होता है। ज्ञान दुःख को समाप्त करता है। ज्ञान के प्रकाश से तुम दुःख से परे हो जाते हो। इस पथ पर तुम्हारे पास सब-कुछ है। तुम्हारे पास यह सुन्दर ज्ञान है जिसमें जीवन के सभी रंग हैं - विवेक, हँसी, सेवा, मौन, गाना, नाचना, विनोद, उत्सव, यज्ञ, सहानुभूति और अधिक रंगीन बनाने के लिए शिकायतें, समस्याएँ, जटिलताएँ तथा गोलमाल। जीवन कितना रंगीन है !


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