अग्निदेव भी है दत्तात्रेय के गुरु

Posted on 18-Jun-2016 11:19 AM




दत्तात्रेय जी कहते हैं पाँचवा गुरु मैंने अग्नि को बनाया। प्रकृति की हर वस्तु, हर कण अपने भीतर गुण-अवगुण को रखे हुए है। बुद्धिमान वो नहीं जो उनके गुण-अवगुण का ज्ञाता हो अपितु वो मनुष्य बुद्धिमान है जो अपने लिए लाभप्रद सदगुणों को प्राप्त करके दुर्गुणों की तरफ दृष्टि नहीं डालता है। संग्रह अर्थात् प्राप्त को बचाने की कोशिश, और परिग्रह अर्थात् जो अपना नहीं उसे भी प्राप्त करने की कोशिश। मनुष्य अभाव से भी दुःख उठाता है और स्वभाव से भी। संग्रह मनुष्य को कभी भी तृप्ति प्रदान नहीं करा सकता क्योंकि संग्रह का दूसरा नाम ही लोभ है। हमारे दुःख का कारण यह नहीं कि हमारे पास कम है अपितु यह है कि हमारी इच्छा और अधिक की है। अग्नि को कितना भी दो वह कभी भी संग्रह नहीं करती।


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