कड़वे प्रवचन

Posted on 14-Apr-2015 01:55 PM




आज तुम्हारा जन्मदिन है तो एक काम करें। सबसे पहले उस मां को प्रणाम करें जिसने तुम्हें जन्म दिया है। फिर उस महात्मा को
प्रणाम करें जिसने तुम्हें जीवन दिया है और फिर उस परमात्मा को प्रणाम करें जो तुम्हें मुक्ति देगा। जन्मदिन अवश्य मनाएं किंतु मां,
महात्मा और परमात्मा को भुलाकर और रूलाकर नहीं बल्कि उन्हें बुलाकर जन्म दिन अवश्य मनाएं लेकिन इस बात को न
भूले कि दो दिन की जिंदगी में एक-दिन मौत का भी होता है। संत और पुलिस दोनों ही समाज-सुधार का काम करते हैं। फर्क
केवल इतना है कि संत संकेत की भाषा में समझाते हैं और पुलिस बेंत की भाषा में। दर-असल जो संत के संकेत को नहीं
समझते हैं उन्हें ही पुलिस के बंेत की जरूरत पड़ी है। पुलिस की वर्दी किसी सन्यासी के भगवा वस्त्रों से कम महत्वपूर्ण
नहीं है। वर्दी विश्वास की प्रतीक है। वर्दीधारी अगर भ्रष्टाचार को प्रश्रय देता है तो वह वर्दी की अस्मिता को खंडित करता
है। अगर आप बुजुर्ग हैं तो मुनि तरुण सागर की कुछ नसीहतें ध्यान में रखिए। जरूरत से ज्यादा मत बोलिए। बिन मांगे बहू-बेटे को
सलाह मत दीजिए। साठ साल की उम्र हो जाए तो अधिकार का सुख छोड़ दीजिए। बेटा-बहू से कहिए: अब तुम्हीं इस घर के
मालिक हो, अपने ढंग से जिओ-रहो। हमें तो बस मेहमान ही समझो बेशक! तिजारी की चाबी भी बेटे को दे देना। मगर हाॅ! अपने
लिए इतना जरूर बचा लेना कि कल को बेटा-बहू के सामने हाथ फैलाने न पड़े। मंदिर और मस्जिद की हैसियत बाथरूम से
ज्यादा कुछ नहीं है। दर-असल मंदिर और मस्जिद एक आध्यात्मिक बाथरूम है। जिस तरह घर के बाथरूम में हम तन की गंदगी
को धोते हैं, वैसे ही मंदिर और मस्जिद में मन की मलिनताओं को धोना चाहिए। बाथरूम से तुम नहा-धोकर बाहर निकलते
है तो एकदम तरोताजे होकर निकलते हो।
- मुनि तरूण सागर


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