स्वर्णमृग रूपी मारीच रामायण का प्रसंग

Posted on 17-Jul-2016 12:24 PM




पंचवटी में रावण की बहन शूर्पणखा ने आकर राम से प्रणय निवेदन किया। श्री राम ने यह कह कर कि वे अपनी पत्नी के साथ हैं और उनका छोटा भाई अकेला है, उसे लक्ष्मण के पास भेज दिया। लक्ष्मण ने उसके प्रणय निवेदन को अस्वीकार करते हुए शत्रु की बहन जानकर उसके नाक और कान काट लिये। शूर्पणखा ने खर-दूषण से सहायता की मांग की और वह अपनी सेना के साथ लड़ने के लिये आ गया। लड़ाई मंे श्री राम ने खर-दूषण और उसकी सेना का संहार कर डाला। शूर्पणखा ने जाकर अपने भाई रावण से षिकायत की। रावण ने बदला लेने के लिये मारीच को स्वर्णमृग बना कर भेजा, जिसकी छाल की मांग सीता ने राम से की। लक्ष्मण को सीता करने रक्षा की आज्ञा देकर श्री राम स्वर्णमृग रूपी मारीच को मारने के लिये उसके पीछे चले गये। मारीच श्री राम के हाथों मारा गया पर मरते-मरते मारीच ने राम की आवाज बना कर ’हे लक्ष्मण’ का क्रन्दन किया, जिसे सुन कर सीता ने आषंकावष होकर लक्ष्मण को श्री राम के पास भेज दिया। लक्ष्मण के जाने के बाद अकेली सीता का रावण ने छलपूर्वक हरण कर लिया और अपने साथ लंका ले गया। रास्ते में जटायु ने सीता माता को बचाने के लिये रावण से युद्ध किया और रावण ने उसके पंख काटकर उसे अधमरा कर दिया।


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