महानता

Posted on 06-Jul-2016 12:06 PM




अस्ताचल को जाते हुए सूर्य भगवान से एक छोटे से दीपक ने कहा -आप सम्पूर्ण विश्व को प्रकाश देते हैं, आप महान हैं, मैं आपको शत्-शत् प्रणाम करता हूँ। सूर्य नारायण बोले! नहीं-नहीं, बंधुवर! ऐसा नहीं है, मैं कुछ भी कर लूँ मगर तुमसे कम हूँ- मैं कभी किसी गरीब की अन्धेरी कोठरी को प्रकाशमान नहीं कर सकता-तुम उसको प्रकाशमान करके जो यश पाते हो, मैं उससे वंचित हूँ-और उन्होंने दीपक के आगे सर झुका दिया। क्या वैभव प्राप्त होने पर हम भी अपने हृदय में स्थित दया, करूणा रूपी दीपक से किसी दीन-हीन के जीवन में उजाला भरने का सामथ्र्य रखते हैं। यदि हाँ, तो उस दीपक की भाँति हमारा जीवन भी सच्चे अर्थों में सार्थक माना जायेगा और दूसरों के हृदय में सहज ही आपके प्रति महानता के भाव उमड़ पडें़गे आइये! हम भी किसी अन्धेरी झोपड़ी में प्रकाश पहुँचाने का शुभ संकल्प लें।


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