सहन करना सीखें

Posted on 15-May-2015 10:33 AM




संसार, देश, प्रान्त और परिवार के झगड़ों का मूल व्यंग्य है। हम दूसरों की बात, चाहे वह न्यायपूर्ण ही क्यों न हो, सहन नहीं करना चाहते। जरा-जरा-सी बात हमारे हृदय-कमल में काँटे की तरह घुस जाती है। कड़वी बात, अपनी आलोचना, बुराइयाँ या हमारी बात का कट जाना हमारी पीड़ा का कारण बन जाता है। उत्तेजित होकर हम झगड़ा कर बैठते हैं। फलतः हम अपने अच्छे सम्बन्धों को अनायास ही तोड़ बैठते हैं। क्रोध शान्त होने पर हमें अपनी मूर्खता का ज्ञान होता है। यदि हम दूसरों की बात सहन करना सीखें, अपने-आपको संयमित कर लिया करें, तो अनेक स्थानों पर विजयी हो सकते हैं। मित्रता, पारिवारिक सम्बन्ध, ग्राहक, श्रोता इत्यादि हमारे मित्र बने रह सकते हैं। 


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