नीति के श्लोक

Posted on 11-Jul-2016 11:26 AM




एकः पापानि कुरुते, फलं भुङ्क्ते महाजनः

भोक्तारो विप्रमुच्यन्ते, कर्ता दोषेण लिप्यते।।

 

अर्थः मनुष्य अकेला पाप करता है और बहुत से लोग उसका आनंद उठाते हैं। आनंद उठाने वाले तो बच जाते हैं, पर पाप करने वाला दोष का भागी होता है।

 

एकं हन्यान्न वा, हन्यादिषुर्मुक्तो धनुष्मता।

बुद्धिर्बुद्धिमतोत्सृष्टा, हन्याद् राष्ट्रम सराजकम्।।

 

अर्थः किसी धनुर्धर वीर के द्वारा छोड़ा हुआ बाण, संभव है किसी एक को भी मारे या न मारे। मगर बुद्धिमान द्वारा प्रयुक्त की हुई बुद्धि राजा के साथ-साथ सम्पूर्ण राष्ट्र का विनाश कर सकती है।।


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