तुलसी मीठे वचन

Posted on 27-Jun-2016 11:57 AM




तुलसी मीठे वचन ते, सुख उपजत चहुं ओर।

वशीकरण इक मंत्र है, तज दे वचन कठोर।।

 

आज संसार नरक रूप हो गया है। वह किसलिए ? इसलिए न, क्योंकि ईष्र्या-द्वेष और घृणा की अँधियारी ने हमें चारों ओर से घेर लिया है, उसे चीर कर बाहर निकलने की हमारी शक्ति सो चुकी है। हमारे बहुत से दःुख केवल दूसरों के प्रति हमारे संशय से पैदा होते हैं। जिसे हम ज़रा-सी, मुस्कान देकर अपना बना सकते हैं, उसे सिकुड़ी हुई भौंहों से दूर कर देते हैं। यदि हम सहानुभूति के साथ दूसरों के जीवन को स्पर्श करें तो वे कैसे ही पत्थर क्यों न हों, अवश्य पानी-पानी हो जायेंगे। नज़र का जादू बड़ा गहरा होता है, प्रेम की एक चितवन युगों की जमी हुई दुर्भावनाओं को काट कर बहा देती है। वह सीधे हमारे हृदय में प्रवेश कर समस्त उदासीनता को जड़ से उखाड़ फेंकती है। प्रेम दुर्लभ नहीं, हमारे लिए सर्वत्र सुलभ है। हर स्थान, हर व्यक्ति, हर प्राणाी में हम उसे प्राप्त कर सकते हैं। वास्तविक कठिनाई यही है कि हम अपने हृदय का दरवाज़ा बंद कर रखते हैं, और पाहुन कंुडी खटखटा कर, कोई आवाज़ न आने पर लौट जाता है। स्वामी रामतीर्थ अमेरिका जा रहे थे। जब जहाज़ बंदरगाह के पास पहुंचने लगा तो अन्य यात्रियों ने उतरने की तैयारियाँ शुरू की। कितने ही लोग ”डेक“ पर दूरबीन लगाए अपने स्वजनों को देखने लगे। तब रामतीर्थ को चुपचाप निद्र्वंद्व बैठे देख कर एक अमेरिकन ने कहा-”तुम कहाँ जाओगे ?- क्या तुम्हारा कोई मित्र नहीं जो तुम्हें लेने आए?“ रामतीर्थ ने अत्यंत विश्वास और प्रेमभरी दृष्टि से उसकी ओर देखा और फिर कंधे पर हाथ रख कर कहा-”क्यों, क्या तुम मेरे मित्र नहीं हो ? मैत्री की जादुई दृष्टि ने सदा के लिए उन दोनों को रेशमी डोरी में बाँध दिया। प्रेम हमारे जीवन का रसायन है। इसके आने से हमारे भीतर रस और आनंद आता है, जिन्दगी की थकान हल्की होती है, यात्रा में सुख मिलने लगता है। हमारे चिरानंद घरों में आनंद और प्रफुल्लता लाने वाला, अध्ययन में हमारे श्रम को हरने वाला, हमें इंसानियत की नई दृष्टि देने वाला, नौकरी की विवधताओं में प्रेरणा व दिलचस्पी के नए óोत पैदा करने वाला कौन है ? प्रेम ही तो है।


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