अध्यात्म दर्शन

Posted on 21-Jul-2016 01:38 PM




महाप्रभु श्री हरिराय जी द्वारा -

श्रीकृष्ण सर्वदा स्मर्यः सर्व लीला समान्वितः

श्रीकृष्ण का स्मरण होने से चित उनकी सेवा में महज ही प्रवृत हो जाता है। अष्टयाम सेवा भावना का आश्रय है - भगवान् की लीला चिन्तन में निरन्तर लगा रहना। पुष्टिमार्ग में सेवा के साधन और फल में अन्तर नहीं माना गया है। दोनों एक ही है। अष्टयाम दर्शन सेवा पहरों में विभक्त है। प्रातः काल से शयन समय तक- मंगला -श्रृंगार -ग्वाल -राजभोग -उत्थापन -भोग -आरती और शयन। श्री मद वल्लभाचार्य जी के द्वितीय पुत्र श्री गुसाईं जी श्री विट्ठलनाथजी महाराज श्री ने अष्टयाम सेवा भावना के विशेष रूप को प्राणन्वित किया। श्री आचार्य जी वल्लभाचार्य जी ने अष्टयाम सेवा भावना का विधान किया।


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