26-Jun-2016
व्यवहारिक ज्ञान

सफलता स्वभाविक क्रिया (व्यवहारिक ज्ञान )

सफलता हमारा स्वभाव है। विकास स्वाभाविक क्रिया है। इंसान यदि कुछ भी न करे तो भी वह कुदरत द्वारा सफलता की तरफ खुद-ब- खुद ढ़केला जायेगा। यदि ऐसा है तो फिर प्रश्न उठता है कि हम अपने आस-पास सभी लोगों को सफल क्यों नहीं देखते? कारण इंसान ‘कुछ नहीं करना’ कहाँ जानता है? वह अज्ञानता में बहुत कुछ


25-Jun-2016
व्यवहारिक ज्ञान

इच्छा शक्ति किस प्रकार कार्य करती है? (व्यवहारिक ज्ञान )

इस संसार में जिस किसी ने जो कुछ प्राप्त किया, वह प्रबल इच्छाशक्ति के आधार पर प्राप्त किया है । मनुष्य जिस प्रकार की इच्छा करता है, वैसी ही परिस्थितियाँ उसके निकट एकत्रित होने लगती हैं । इच्छा एक प्रकार की चुंबकीय शक्ति है, जिसके आकषर्ण से अनुकूल परिस्थितियाँ खिंची चली आती है । जहाँ इच्छा नहीं, वह


24-Jun-2016
व्यवहारिक ज्ञान

कुछ ऐसा भी करके देखिये (व्यवहारिक ज्ञान )

आप दूसरों से जैसे व्यवहार की अपेक्षा करते हैं वैसा ही आचरण दूसरों के साथ भी कीजिए। दुख और चिंता से बचाने वाला इससे अच्छा कोई दूसरा उपाय नहीं है। जो दूसरों को दुख देगा या अभद्र व्यवहार करेगा उसे सामाजिक दंड, प्रतिकार, घृणा, निंदा का पात्र बनना ही पड़ेगा। अपनी आत्मा भी उसको धिक्कारती रहेगी। इससे बचन


22-Jun-2016
व्यवहारिक ज्ञान

सज्जनता का नुस्खा घटक द्रव्य (व्यवहारिक ज्ञान )

सच्चाई की हरड़, बंधुत्व के बहेड़े, आत्मीयता के आँवले, ईमानदारी की जड़, प्रेम के पत्ते, सत्संग के बीज, परिश्रम के फल, राष्ट्रीयता का अर्क, सहयोग का शर्बत और वाणी का शहद। निर्माण विधि-सब द्रव्यों को अलग-अलग सद्भावना के खरल में डाल कर सात बार परोपकार की भावना देकर प्रेम से घुटाई करें। और सबको


19-Jun-2016
व्यवहारिक ज्ञान

कम नहीं है जीवन में पिता का महत्व (व्यवहारिक ज्ञान )

कहते हैं कि मां दुनिया की अनोखी और अद्भुत देन हैं। वह अपने बच्चे को नौ महिने तक अपनी कोख में पाल-पोस कर उसे जन्म देने का नायाब काम करती है। अपना दूध पिलाकर उस नींव को सींचती और संवारती है। जैसा कि मां का स्थान दुनिया सबसे महत्वपूर्ण स्थान है। वैसे भी पिता का स्थान भी बहुत महत्वपूर्ण होता है। भले


12-Jun-2016
व्यवहारिक ज्ञान

क्यों होता हैं पितृदोष (व्यवहारिक ज्ञान )

पितृ दोष के कारण परिवार में किसी की अकाल मृत्यु होने से, अपने माता-पिता आदि सम्माननीय जनों का अपमान करने से, मरने के बाद माता-पिता का उचित ढंग से क्रियाकर्म और श्राद्ध न करने से, उनके निर्मित वार्षिक श्राद्ध न करने से पितरों का दोष लगता है। इसके फलस्वरूप परिवार में अशांति, वंश वृद्धि में रूकावट,


11-Jun-2016
व्यवहारिक ज्ञान

वाणी का संयम (व्यवहारिक ज्ञान )

महर्षि वेदव्यास जब महाभारत को लिपिबद्ध करा रहे थे तो उस पूर्ण अवधि में गणेश जी ने एक बार भी अपना मौन भंग नहीं किया। महाभारत लिपिबद्ध हो जाने के बाद महर्षि वेदव्यास ने गणेश जी से उनके इस वाक्संयम का कारण पूछा तो गणेश जी बोले - “महर्षि ! वाणी का संयम ही मन को एकाग्र रखने का एकमात्र साधान है।


03-Jun-2016
व्यवहारिक ज्ञान

अहंकार का दमन (व्यवहारिक ज्ञान )

यूनान में आल्सिबाएदीस नामक एक बहुत बड़ा संपन्न जमींदार था । उसकी जमींदारी बहुत बड़ी थी । उसे अपने धन-वैभव एवं जागीर पर बहुत अधिक गर्व था । वह इसका वर्णन करते हुए थकता नहीं था । एक दिन वह प्रसिद्ध दार्शनिक सुकरात के पास जा पहुँचा और अपने ऐश्वर्य का वर्णन करने लगा । सुकरात उसकी बातें कुछ देर तक सुनते


05-May-2016
व्यवहारिक ज्ञान

आत्मविश्वास ही है सफलता का साधन (व्यवहारिक ज्ञान )

साहस से आशय उस आंतरिक शक्ति से है, जो किसी व्यक्ति को कार्य करने के लिए प्रेरित करती है। साहस को प्रभावित करने वाले मुख्य तत्व हैं एहसास, दृष्टिकोण और भावना। साहस समृद्धि की राह बनाता है और साहस बिना सफलता प्राप्त नहीं हो सकती। साहस हेतु मनुष्य में तत्परता, सतर्कता, उद्यम और दृढ़निष्ठा नामक गुण ह


13-Mar-2016
व्यवहारिक ज्ञान

दूर करें नेगेटिविटी (व्यवहारिक ज्ञान )

आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में जहां किसी को अपने बारे में भी सोचने की फुर्सत नहीं, ऐसे में बार-बार यह सोचना कि लोग हमारे बारे में क्या सोचते होंगे, नकारात्मकता की ओर ले जाता है। कई बार सोच का यह नजरिया हमारे सकारात्मक विचारों को भी नकारात्मकता की तरफ मोड़ देता है, लेकिन व्यवहार में बदलाव और सकार