चक्रवर्ती सम्राट को पुण्योपार्जन का शौक कुछ ऐसा लगा कि प्रजा से पुण्य खरीदने लगे! ऐसी तराजू बनाई गई जिसमें किसी के पुण्यों के लेखों का कागज एक पलड़े में रखते ही दूसरे पलडे़ में उसके बराबर स्वर्ण मुद्राएं तुल जाती! विधि ने अपना काम किया, पड़ौस के राजा ने आक्रमण किया, परिणाम में हार मिली चक्र
शास्त्रों में गुरु के अर्थ के अंधकार को दूर करके ज्ञान का प्रकाश देने वाला कहा गया है, गुरु हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाले होते हैं, गुरु की भक्ति में कई श्लोक रचे गये हैं जो गुरु की सार्थकता को व्यक्त करने में सहायक होते हैं, गुरु की कृपा से ईश्वर का साक्षात्कार संभव हो पाता है और गुरु
’’अब मैं स्वयं के लिए मर गया। में अपने पूर्व जीवन के सब अवगुणों से मुक्त हो,ऐहिक जीवन छोड़, धार्मिक तथा आध्यात्मिक जीवन बिताने के लिए उद्यत हो गया हूँ।’’ श्री रामकृष्ण परमहंस के एक शिष्य अत्यन्त क्रोधी थे। छोटी-छोटी बात पर उनका क्रोध जाग्रत हो जाता था तथा एक बार क्र
सृष्टि का सृजनकता्र ईश्वर एक है किन्तु उसके नाम अनेक हैं। मानव-जाति भी एक है। हम सब सृष्टि के रचयिता एक ही परमात्मन् की कलाकृति और भाई-भाई है। अपने भाइयों से द्रोह किसी भी सूरत में श्रेयस्कर नहीं है। सब मिलजुल कर भाईचारे के साथ आपसी सहयोग और सौहर्द्र से रहो क्योंकि इस धरती पर कोई बेगाना नहीं है।
एक महात्मा जी थे-बड़े भले-बड़े अच्छे। नाम के ही साधु नहीं, हृदय से भी भक्त थे। आमतौर पर उनके श्री मुख से निकलता था -”जगदीश जगत का भला ही करता हैं।“ एक दिन एक मैय्या दुःखी अवस्था में तो आयी ही- उन्हें महात्मा जी पर गुस्सा भी था। शोक पूर्ण अवस्था में वह बोली-”महाराज आपकी सब बातें
मन-वचन-काय तीनों के प्रयास संयत हों। संयत प्रयास ही जीवन में संतुलन बनाते हैं। यही संतुलन आदमी को निश्चिन्त बनाता है। निश्चिन्त होना ही ध्यान है। ध्यान एकाग्रता का नाम है, एकाग्रता है तो स्थिरता है और स्थिरता ही जीवन की सफलता है। प्रयास करो कि जीवन इतना संतुलित हो कि हमें निश्चिन्त होने के
बात अमेरिका के फिलेडेल्फिया राज्य की है, एक बार बहुत ही घनी रात में बहुत तेज बारिश हो रही थी, एक बुजुर्ग दम्पति बारिश में बचने के लिए किसी होटल में एक कमरा ढूँढ रहे थे, रात बहुत हो चुकी थी, और बाहर हालत कोई खास अच्छी नहीं थी। ऐसे में वे एक होटल में जब गए, तो बूढे आदमी ने कहा, ’&rsquo
कुछ वर्षो पहले की घटना है- बम्बई में रामदास नामक एक सज्जन नौकरी के पैसे लेकर घर लौट रहे थे। रामदास गृहस्थ थे। घर में छः आदमी थे। वे एक व्यापारी फर्म में ढाई सौ रूपये मासिक की नौकरी करते थे। कठिनता से खर्च चलता था। महीने की अन्तिम तारीख को जब वेतन के पैसे मिलते, तब वे महीने भर का अनाज, दूध, दवा, ध
चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार तेज एंटीबायोटिक एवं एलोपैथिक दवाएं हमारे शरीर में मौजूद आवश्यक एवं विभिन्न प्रकार के जर्म्स तथा प्रतिरोधी जर्म्स को भी नष्ट कर देती है। फलस्वरूप शरीर में ‘इस्ट’ की मात्रा बढ़ने लगती है और हम विभिन्न प्रकार की एलर्जी के शिकार हो जाते हैं लेकिन
मनुष्य उन वस्तुओं और व्यक्तियों के पीछे अहर्निश पागलों की तरह भाग रहा है, जो स्थायी रूप से उसके पास रहने वाली नहीं है। दुख इस बात का है कि इसे समझते-बूझते भी वह इससे आँख मूंदे हुए है। सब जानते हैं कि एक न एक दिन मरना है, किन्तु उस मरण को सुधारने का प्रयत्न नहीं करते। मनुष्य अच्छी-बुरी हर परिस्थित