सब मन का खेल है। हमारी चेतना का उत्कर्ष मुकाम हमारा मन है। यही मन दुख देता है और यही मन अपने वास्तविक स्वरूप से मुलाकात करा कर आनंद से भर देता है। अध्यात्म एक अंतस का भाव है जो पूर्णता का मार्ग प्रशस्त कराती है। आज मानव फिर एक दहलीज़ पर खड़ा है। मेडिकल साइंस की आश्चर्य ढंग से प्रगति, नयी-न
बच्चे की परवरिश उसके माता-पिता की जिम्मेदारी होती है। वो अपने बच्चे को ऐसी बातें सिखाते समझाते हैं जो जिंदगीभर उनके काम आए। ऐसी ही कुछ बातें हम यहां साझा कर रहे हैं, जो हर अभिभावक को अपने बच्चे को समझानी चाहिए। परवरिश में रखें ये बातें याद - जब किसी इंसान की जिंदगी में उसकी औलाद आती
जीवन केवल धन कमाने के लिए नहीं, वह धर्म कमाने और पुण्य बढ़ाने के लिए भी है। पुण्य को बढ़ाये बिना जीवन में बरकत संभव नहीं है। धर्म को बढ़ाये धन बढ़ने वाला नहीं है। धन की तृष्णा है। यह काम वासना से भी भयंकर है। धर्म से ही मन की भूख तो तृप्त किया जा सकता है। धर्म फासलों को कम करने के लिए और दी
वैवाहिक जीवन में पति-पत्नी के बीच नोंक झोंक होना सामान्य सी बात है। लेकिन यह बात तलाक तक पहुंच जाए तो दोनों की जिंदगी के लिए दुखद होता है। बे्रकअप यानी किसी संबंध का टूटना, जब कोई रिश्ता टूट जाए उसका असर ताउम्र रहता है। वह रिश्ता पति-पत्नी का हो तो उसके टूटने में बेपनाह दर्द होता है।
अनुज अपने घर में सबसे छोटा है। उसके पिताजी बहुत गुस्सैल स्वभाव के है। घर में सबसे छोटा होने के कारण बचपन से ही उनके गुस्से का शिकार सबसे ज्यादा अनुज ही होता था। धीरे-धीरे अनुज के अंदर कुंठा बढ़नें लगी। बड़ा होने पर वह गलत लोगों की संगत में पड़ गया। आज अनुज बहुत जिद्दी हो चुका है। उसके पिता को अब
1. बिना सोच विचार के अविवेकपूर्ण तरीकों से लिए गये निर्णय बर्बादी की ओर ले जाते है। अतः किसी भी निर्णय को करते समय विवेक को जागृत रखो। 2. विचारों की निष्पक्षता बनाई रखें तथा मूखों से बहस न करें। 3. किसी की भी अच्छाईयों की सबके सामने खुलकर प्रशंसा करें तथा उनकी गलतियों व
वृद्धावस्था में मानव-जीवन को अभिशाप न बनने देने एवं पारिवारिक सामंजस्य बनाये रखने हेतु कतिपय मननीय एवं करणीय बिन्दु - 1. पारिवार के सभी सदस्य प्रतिदिन प्रातःकाल उठने के साथ ही अथवा स्नानोपरान्त वृद्ध माता-पिता, दादा-दादी तथा अपने से बड़ों के चरण-स्पर्श करते हुए उन्होंने&n
जीवन में उतार-चढ़ाव लगे रहते हैं। जरूरत है तो बस खुद को बैलेंस्ड रखने की। कई बार आस-पास के शोर के कारण परेशानी होती है तो कई बार दिमाग में चल रही हलचल में खुद को बैलेंस्ड रखना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में दिमाग को शांत रखने के लिए कुछ बातें फायदेमंद रहेंगी। जानिए इनके बारे में ..............
क्रोध-मुक्ति का एक उपाय है: ‘बोधपूर्वक बोले और कार्य करो।’ अगर आपको लगे कि बिना बोले काम नहीं चलेगा तो आप सावधानी से अपनी बात को व्यक्त करें। सामने वाला भले ही समझे कि आप गुस्सा कर रहे हैं पर आप भीतर से सचेत रहें। आपका गुस्सा किसी भी तरह से कोई नुकसान न कर बैठे। हम कई बार ट्रकों के पी
क्या आप शांति चाहते है? यदि हाँ, तो यह जरा भी कठिन नहीं है। इसका बहुत छोटा-सा उपाय है। उपाय यह है कि इसकी खोज करना बन्द कर दिया जाए। इसके सारे बाहरी आधारों को गिरा दीजिए और अब इसे अपने अन्दर ढूँढ़ना शुरू कर दीजिए। देखिए, आपकी उससे मुलाकात होती है या नहीं। निश्चित रूप से होेगी। देर भले ही हो जाए,