16-Jul-2015
सम्पादकीय

सम्पादकीय 14 जुलाई (सम्पादकीय )

धन क्या है? वस्तु ही तो है। उसका उपार्जनकरना, उपयोग करना यही जीवन है उसकी चिन्ता में जीवन को घुला देना कहां तक उचित है?  एक बार एक बहुत बड़े धन कुबेर थे। उनके पास इतनी संपदा कि दोनों हाथों से लुटाए तो खत्म न हो। एक बार वे बीमार पड़ गए। भूख नही लगती थी। चिकित्सकों को उनमें कोई रोग न


16-Jul-2015
सम्पादकीय

सम्पादकीय 13 जुलाई (सम्पादकीय )

माँ ने बच्चे को भेजा, मिठाई लाने। बात पुराने जमाने की है न: सो उस समय कहा गया -’’देख बेेटा, फीकी मिठाई न ले आना, मीठी देखकर लाना। एक जगह नहीं तीन-तीन जगह। बच्चे ने कहा ’’नहीं-नहीं यह तो फीकी है।’’ चैेथा हलवाई बुद्धिमान था, - पूछा बेटा ’’मुन्ने मुँह


16-Jul-2015
सम्पादकीय

सम्पादकीय 11 जुलाई (सम्पादकीय )

’युधिष्ठर बेटा, ऐसा करना कि दस ऐसे व्यक्तियों की सूची बना कर लाना, जो -बहुत ही बुरे हैं। मैं प्रयत्न करूंगा कि वे अपने दुर्गुणों को, कषायों को कम कर सके।’ गुरू द्रोणाचार्य की बात सुन युधिष्ठिर ने सिर हिलाया। कुछ दिनों बाद ज्येष्ठ पांडुपुत्र कोरा कागज लेकर आये-निराशा के स्वरों में गुरू


10-Jul-2015
सम्पादकीय

सम्पादकीय 10 जुलाई (सम्पादकीय )

यह विचार खास तौर पर, उन महानुभावों के सामने रखा जा रहा है, जो सेवा के महत्त्व से तो भलीभांति परिचित है ही, परन्तु वे उस शुभ मुहुर्त की प्रतिक्षा में हैं, जब वे सेवा का यज्ञ प्रारम्भ कर सके, या ऐसे व्यक्ति की तलाश में है जो इनकी सेवा पाने का अधिकारी है। आदरणीय, आपश्री जानते हैं कि दुनियां म


09-Jul-2015
सम्पादकीय

सम्पादकीय 09 जुलाई (सम्पादकीय )

एक बार देवताओं ने विष्णु भगवान से कहा ‘‘हमें स्वर्ग से भी किसी अच्छे लोक में भेज दीजिये... विष्णु ने उन्हें मनुष्य लोक भेज दिया और कहा कि वहांँ ’’सुख और सौंदर्य तभी दृष्टिगोचर होगा, जब तुम लोग करूणा जीवित रखोगे और सेवाधर्म का रसास्वादन करोगे।’’ देवताओं न


08-Jul-2015
सम्पादकीय

सम्पादकीय 08 जुलाई (सम्पादकीय )

चक्रवर्ती सम्राट को पुण्योपार्जन का शौक कुछ ऐसा लगा कि प्रजा से पुण्य खरीदने लगे! ऐसी तराजू बनाई गई जिसमें किसी के पुण्यों के लेखों का कागज एक पलड़े में रखते ही दूसरे पलड़े में उसके बराबर स्वर्ण मुद्राएं तुल जाती! विधि ने अपना काम किया, पड़ौस के राजा ने आक्रमण किया, परिणाम में हार मिली चक्रव


07-Jul-2015
सम्पादकीय

सम्पादकीय 07 जुलाई (सम्पादकीय )

जीवन कठोर नहीं सरल बनावें संसार में सफलता पाने का पहला गुर सबके साथ शालीन, विनम्र और मधुर व्यवहार करना है। किसी से अशिष्ट, अशालीन अथवा नुकसानदायक व्यवहार की अपेक्षा और आशंका के बावजूद भी स्वयं पर संयम रखना, अपनी उदारता, शिष्टता तथा शालीनता को


06-Jul-2015
सम्पादकीय

सम्पादकीय 06 जुलाई (सम्पादकीय )

प्यासा मनुष्य अथाह समुद्र की ओर यह सोचकर दौड़ा कि जी भर अपनी प्यास बुझाऊँगा ! वह किनारे पर पहुंचा और अंजलि भरकर जल मुंह में डाला किन्तु तत्काल ही उगल दिया। प्यासा सोचने लगा कि नदी, समुद्र से छोटी है, किन्तु उसका पानी मीठा है। समुद्र नदी से कई गुना विशाल है पर उसका पानी खारा है। कुछ ही क्षणों बाद


04-Jul-2015
सम्पादकीय

सम्पादकीय 04 जुलाई (सम्पादकीय )

वेश की पूजा: विश्वास की रक्षा एक डाकू साधु के वेश में रहता था। उसके हाथ में हमेशा एक माला होती थी, जिसे वह फेरता रहता था। डकैती में मिला अधिकांश धन वह गरीबों में बांट देता था।  एक दिन व्यापारियों का एक समूह डाकुओं के ठिकाने के


03-Jul-2015
सम्पादकीय

सम्पादकीय 02 जुलाई (सम्पादकीय )

चाहे व्यक्ति हो या विश्व, कोई ऐसा नहीं है, जो शांति नहीं चाहता, लेकिन मुझे लगता है कि कोई ऐसा नहीं है, जो सचमुच में शांति चाहता है। शांति की इच्छा तो हर कोई रखता है, लेकिन इसे चाहता कोई नहीं है। हर कोई इससे बुरी तरह से घबराता है। इसे ग्रहण करके इसके साथ रहने का साहस किसी में नहीं है। इसके बावजूद