बनाए मजबूत रिश्ता

Posted on 01-Aug-2016 12:17 PM




प्रपंच छोड़ें: प्रपंच बड़ा चटपटा शब्द है। लोग इसे चटखारे ले कर इस्तेमाल करते हैं। मसलन, बहू के भाई ने इंटरकास्ट मैरिज कर ली। बस फिर तो बहू का ससुराल के लोगों से नजरें मिलाना मुश्किल हो गयासासूमां अपने दिए संस्कारों की मिसाल देदे कर बहू के मायके के लोगों की धज्जियाँ उड़ाने में मशगूल हो गईंअपना उत्तरदायित्व समझें:  उत्तरदायित्व का मतलब सिर्फ माता-पिता की सेवा करना ही नहीं, बल्कि अपने बच्चों के प्रति भी आप के कुछ उत्तरदायित्व होते हैं आजकल के माता-पिता आधुनिकता की चादर में लिपटे हुए हैं। बच्चों को पैदा करने और उन्हें सुख सुविधा देने को ही वे अपनी जिम्मेदारी मानते हैं। लेकिन इस से ज्यादा वे अपनी पर्सनल लाइफ को ही महत्त्व देते हैं। इस स्थिति में यही कहा जाएगा कि आप एक आदर्श माता-पिता नहीं हैं। लेकिन इस नए वर्ष में आप भी आदर्श होने का तमगा पा सकते हैं यदि आप अपने उत्तरदायित्वों को पूरी शिद्दत से निभाएँ। झूठ का न लें सहाराः अकसर देखा गया है कि अपनी जिम्मेदारियों से बचने, अपनी साख बूठ का सहारा लेते हैं। संयुक्त परिवार में झूठ की दरारें ज्यादा देखने को मिलती हैं, क्योंकि एकदूसरे से खुद को बेहतर साबित करने की प्रतिस्पर्धा में लोगों से गलतियाँ भी होती हैं। लेकिन इन्हें नकारात्मक रूप से लेने की जगह सकारात्मक रूप से लेना चाहिए। जब आप ऐसी सोच रखेंगे तो झूठ बोलने का सवाल ही नहीं उठता। इस वर्ष सोच में सकारात्मकता ले कर आएंइस से पारिवारिक रिश्तों के साथ आप का व्यक्तित्व भी सुधर जाएगा। आर्थिक मनमुटाव से बचें: आधुनिकता के जमाने में लोगों ने रिश्तों को भी पैसों से तराजू में तोलना शुरू कर दिया है। रिश्तेदारियो मे ं अकसर समारोह के नाम पर धन लूटने का रिवाज है। शादी जैसे समारोह को ही ले लीजिए। यहाँ शगुन के रूप में लिफाफे देने और लेने का रिवाज है। इन लिफाफों में पैसे रख कर रिश्तेदारों को दिए जाते हैं। जो जितने पैसे देता है उसे भी उतने ही पैसे लौटा कर व्यवहार पूरा किया जाता है। लेकिन ऐसे रिश्तों का कोई फायदा नहीं जो पैसों के आधार पर बनते बिगड़ते हैं। इस वर्ष तय कीजिए कि रिश्तों में आर्थिक मनमुटाव की स्थिति से बचेंगे, रिश्तों को भावनाओं से मजबूत बनाएँगे। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रताः अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लेख हमारे देश के संविधान में भी किया गया है, लेकिन परिवार के संविधान में यह हक कुछ लोगों को ही हासिल होता है, जो बेहद गलत है। अपनी बात कहने का हक हर किसी को देना चाहिए। कई बार हम सामने वाले की बात नहीं सुनते या उसे दबाने की कोशिश करते हैं अपने सीधेपन के कारण वह दब भी जाता है, लेकिन नुकसान किस का होता है? आप का, वह ऐसे कि यदि वह आप को सही सलाह भी दे रहा होता है, तो आप उस की नहीं सुनते और अपना ही राग अलापते रहते हैं। ऐसे में सही और गलत का अंतर आप कभी नहीं समझ सकते। इसलिए इस वर्ष से तय करें कि घर में पुरुष हो या महिला, छोटा हो या बड़ा हर किसी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी जाएगीसामाजिक रिश्ते संतुलित और सुखद जिंदगी जीने के लिए पारिवारिक रिश्तों के साथ-साथ सामाजिक रिश्तों को भी मजबूत बनाना जरूरी है। आइए हम आप को बताते हैं सामाजिक रिश्तों को बेहतर बनाने के 5 तरीके। ईगो का करें त्यागः ईगो बेहद छोटा लेकिन बेहद खतरनाक शब्द है। ईगो मनुष्य पर तब हावी होता है जब वह अपने आगे सामने वाले को कुछ भी नहीं समझना चाहता। उसे दुख पहुँचाना चाहता हो या फिर उस का आत्मविश्वास कम करने की इच्छा रखता होअकसर दफ्तरों में साथ काम करने वाले साथियों के बीच ईगो की दीवार तनी रहती है। इस चक्कर में कई बार वे ऐसे कदम उठा लेते हैं, जो उन के व्यक्तित्व पर दाग लगा देते हैं या कई बार वे सामने वाले को काफी हद तक नुकसान पहुँचाने में कामयाब हो जाते हैंलेकिन क्या ईगो आप को किसी भी स्तर पर ऊँचा उठा सकता है? शायद नहीं यह हमेशा आप से गलत काम ही करवाता है। आपको खराब मनुष्य की श्रेणी में लाता है, तो फिर ऐसे ईगो का क्या लाभ जो आप को फायदे से ज्यादा नुकसान पहुँचाता हो? ठान लीजिए कि ईगो का नामोनिशान अपने व्यक्तित्व पर से मिटा देंगे और दूसरों का बुरा करने की जगह अपने व्यक्तित्व को निखारने में समय खर्च करेंगेमददगार बनें: मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और हमेशा से समूह में रहता चला आया है। इस समूह में कई लोग उस के जानकार होते हैं तो कई अनजान भी। लेकिन मदद एक ऐसी प्रक्रिया है जो मनुष्य को मनुष्य से जोड़ती है। किसी की तकलीफ में उस का साथ देना या उस की हर संभव मदद करना एक मनुष्य होने के नाते आप का कर्तव्य है।


Leave a Comment:

Login to write comments.