बोझिल होती बच्चों की पढ़ाई

Posted on 16-Oct-2015 02:54 PM




आज अंधिकाश माताएं बच्चों को पढ़ाने या उनसे अंग्रेजी में बातें करने के लिए स्वयं स्पोकेन इंग्लिश की कक्षाएं या इसी तरह की अन्य कोई संस्था ज्वाइन कर बच्चों को पढ़ा सकने के काबिल बनने के लिए एक मोटी रकम हर महीनें खर्च करती है या फिर किसी ट्यूटर को तगड़ी फीस देकर रखा जाता है जो उनके बस्तें भर होम वर्क प्रतिदिन करवा दें। 
प्रतियोगिता के इस दौर में अपने बच्चों को जल्द हर गुण में पारंगत कर देने की लालसा में आज दूध पीते बच्चों को अभिभावक नर्सरी स्कूलों में डाल देते है। ढ़ाई-तीन साल के बच्चें न तो शब्दों का सही उच्चारण कर पाते है न ही अपनी दैनिक आवश्यकता की अनुभूति कर पाते है। 
बचपन का दूसरा नाम मौज-मस्ती है पर आज उनका बचपन, नामांकन टेस्ट से लेकर भारी-भरकम अपने बस्तें के बोझ में, आंख खुलते ही बस पर चढ़ने की आपाधापी में, दिनभर विद्यालय के अनुशासन के बीच रहने में और घर आते ही होम वर्क बनाने की चिंता में खो-सा गया है। 


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