सावधान होने से बेहतर है साहसी होना

Posted on 05-Aug-2016 11:09 AM




हम वही करना पसंद करते है जिसमे सफलता सुनिश्चित हो, हम मानते है कि जोखिम उठाना तो मूर्ख लोगों का काम है, हम हर नया काम हाथ में लेने से पूर्व कई बार सोचते है,यकीनन सोचना भी चाहिए परन्तु इतना भी ना सोचे की साहस का नष्ट ही हो जाये, हम ज्यादातर सावधान रहना पसंद करते है और छोटे व तुच्छ तनाव और संघर्ष से बचने का प्रयास करते है जो एक दिन हमारी नाकामी व असफलता का मार्ग बन जाता है। किसी भी काम के परिणाम के दार से दहशत में आकर उस चुनौतीपूर्ण कार्य को हाथ न लगाना सावधानी नहीं बल्कि पलायन की पहचान है। साहसी व पराक्रमी लोगों की जीवनी पढ़ कर हम निश्चित तौर पर कह सकते है की सावधान होने की बजाय साहसी होना बेहतर है। तकदीर हमेशा युवाओं को प्रेयसी होती है क्योंकि युवा हमेशा सावधान कम और उत्साही ज्यादा होते है तथा वे साहस दिखाकर तकदीर के स्वामी ही नहीं बादशाह बन जाते है। जब हम अनजानी बातों से रते है, परिवर्तन से घबराते है तो इसका सीधा अर्थ है की हम नया नहीं लकीर के फकीर बने रहना चाहते है, अपने सपनो को पूरा करने से डरते हुए अपनी जिन्दगी में बदलाव से पहले यथास्थितिवादी बने रहना चाहते है जबकि हम भूल जाते है की हर महान आविष्कार इन अनजानी स्थितियों के प्रति साहस दिखने से ही संभव हुई है। स्वामी विवेकानंद का कथन कि-“विश्व के अधिकांश लोग इसलिए असफल हो जाते है की उनमें समय पर साहस का संचार नहीं हो पाता और वे भयभीत हो उठते हैं। इस प्रकार एक आम आदमी को वास्तविक जिन्दगी जीने के लिए साहस रूपी जज्बे की उतनी ही जरूरत होती है जितनी किसी महान योद्धा को। साहस हर व्यक्ति में होता है, जरूरत बस इतनी है कि वो खुद को पहचाने, क्षमता को जाने और पूर्ण निष्ठा, तन्मयता और एकाग्रता के साथ मंजिल की और एक मजबूत कदम बढ़ने की।


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