आत्म-जागरण ही सच्ची चेतना है

Posted on 08-May-2015 02:05 PM




हमारे जीवन की विडम्बना यही है कि हम शारीरिक रूप से तो जागते रहते हैं, लेकिन चेतना के स्तर पर उसी तरह सोए रहते हैं, जैसे कि शकुन्तला सो गई थी। जागते हुए जब जागने का एहसास हो, तो यह सजग होने की पहली सीढ़ी है। उठने के साथ ही तो हमें एहसास हो जाता है कि हम जग गए। लेकिन इसके कुछ मिनट बाद ही यह एहसास तिरोहित हो जाता है। फिर हम रूटीन के कामों में लग जाते हैं। सजगता का दूसरा चरण वह है जब हमारी चेतना जागने के एहसास से ऊपर उठकर करने के एहसास तक पहुँच जाती है। अब हम जाग तो गए हैं, लेकिन जागकर कर क्या रहे हैं। हम जो कुुछ भी कर रहे हैं, यदि हमारी चेतना उस करने का साथ दे रही है तो यह सजगता का दूसरा चरण हुआ। शकुुन्तला के उदाहरण के मामले में हम कह सकते हैं कि वह सजग थी, लेकिन अपने प्रियतम की याद के प्रति। प्रियतम की स्मृति के प्रति तो वह इतनी अधिक सजग थी (जिसे हम सब इस भाषा में कहते हैं कि ’वह याद में खोयी हुई थी’) कि उसे अपने आसपास की घटनाओं का एहसास ही नहीं रह गया था।) उसका मतलब यह हुआ कि वह भौतिक रूप से असजग थी, किन्तु मानसिक रूप से सजग थी। अब यह बात अलग है कि उसकी यह बात आम जीवन के लिए अव्यावहारिक सिद्ध हुई। के मामले में हम कह सकते हैं कि वह सजग थी, लेकिन अपने प्रियतम की याद के प्रति। प्रियतम की स्मृति के प्रति तो वह इतनी अधिक सजग थी (जिसे हम सब इस भाषा में कहते हैं कि ’वह याद में खोयी हुई थी’) कि उसे अपने आसपास की घटनाओं का एहसास ही नहीं रह गया था।) उसका मतलब यह हुआ कि वह भौतिक रूप से असजग थी, किन्तु मानसिक रूप से सजग थी। अब यह बात अलग है कि उसकी यह बात आम जीवन के लिए अव्यावहारिक सिद्ध हुई। 


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