स्वयं को जानने के लिए हमें जाग्रत होना है

Posted on 20-May-2015 01:47 PM




ंशरीर बोझ है यदि बीमार है, मन बोझ है अगर उसे ज्ञान नहीं है। ’मैं शरीर हूँ’ इस अज्ञान के साथ जब हम जीते हैं तब वास्तव में नरक में ही जी रहे हैं। असली ’मैं’ को न जानने की वजह से और इसके प्रति जाग्रत न होने के कारण हमंे ऐसे लगता है कि शरीर के साथ होने वाली हर चीज मेरे साथ हो रही है। उदाहरण के लिए, अगर किसी के कुर्ते पर कीचड़ लग जाए या किसी की शर्ट फट जाए तो वह यह नहीं कहेगा कि ’उसे कीचड़ लगी है या वह फट गया है।’ कीचड़ कुर्ते पर लगी है, न कि उस इंसान के शरीर पर । शर्ट फटी है, वह इंसान नहीं। इसी तरह यह कहा जा सकता है कि ’शारीरिक पीड़ा या यातना भी मेरे साथ नहीं बल्कि मेरे शरीर के साथ है।’ समस्या यह है कि बचपन से ही लोगों को यह मान्यता दी जाती है कि ’तुम शरीर हो।’ इस तरह से शारीरिक बीमारियाँ एक नरक तैयार कर देती हैं। जैसे किसी को दाँत का दर्द है तो उसके लिए वह किसी नरक से कम नहीं है।
इंसान केवल गलत धारणा की वजह से स्वयं को शरीर मान बैठता है। शरीर तो सिर्फ एक जड़ वस्तु है। जिस तरह पंखा एक वस्तु है, उसी तरह शरीर भी एक जड़ वस्तु है। इस शरीर को ’मैं’ मानकर जीने को ही अहंकार कहा गया है। इसलिए शरीर की बीमारियाँ, पीड़ाएँ, यातनाएँ इंसान के लिए नरक बन जाती हैं। असल में तो शरीर मन, बुद्धि से परे है, इस असली ’मैं’ को जानने के लिए ही हमें जाग्रत होेना है।


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