संघर्ष ही हमें मजबूत बनाता है

Posted on 01-May-2015 03:18 PM




कहा जाता है कि हरिद्वार की रेत में पड़ा हुआ पत्थर शिवलिंग की तरह होता है। क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों होता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि गंगा नदी ऊपर पहाड़ पर सेे बहती हुई हरिद्वार में आकर मैदान पर बहना शुरू करती है। इस नदी के साथ पहाड़ के टुकड़े बह-बहकर आते रहते हैं। ये टुकड़े नदी के तल से टकरा-टकराकर घिसते रहते हैं और घिस-घिसकर चिकने हो जाते हैं। जो जितना घिसता है, वह उतना ही चिकना हो जाता है। यानी कि जो जितना संघर्ष करता है, वह उतना ही मूल्यवान बन जाता है। सही कहा गया है कि सोना तप कर निखरता है और ठीक यही स्थिति मेहंदी की होती है, जो जितनी घिसी जाती है, उतना ही गहरा रंग रचाने वाली बन जाती है।
हम सब अक्सर इन संघर्षों से, इन कठिनाइयों सेे घबराते हैं। हम नहीं चाहते कि हम इसमें पड़ें और यह भी नहीं चाहते कि हमारे बच्चे इसमें पड़ें। हम सब भूल ही जाते हैं कि संघर्ष और दुःख ही हमंे सही अर्थों में माँजने का काम करता है। संघर्ष सामने वाले को इतना मज़बूत बना देता है कि उसे देखने की बात तो दूर उसका नाम सुनते ही उसके विरोधियों के छक्के छूट जाते हैं।


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