बच्चों को प्रताडि़त न करे , प्यार से समझाएं

Posted on 23-Oct-2015 03:03 PM




अनुज अपने घर में सबसे छोटा है। उसके पिताजी बहुत गुस्सैल स्वभाव के है। घर में सबसे छोटा होने के कारण बचपन से ही उनके गुस्से का शिकार सबसे ज्यादा अनुज ही होता था। धीरे-धीरे अनुज के अंदर कुंठा बढ़नें लगी। बड़ा होने पर वह गलत लोगों की संगत में पड़ गया। आज अनुज बहुत जिद्दी हो चुका है। उसके पिता को अब अपनी गलती महसूस होती है।
यह सही है कि माता - पिता अपनें बच्चों की भलाई चाहते है और इसलिए उनके प्रति अनुशासनात्मक कार्रवाई के दौरान वे उनकी पिटाई भी कर सकते है। पर इसकी भी एक सीमा होनी चाहिए, क्योंकि कहा गया है-‘अति सर्वत्र वर्जयेत’ यानी अति किसी भी चीज की बुरी होती है। मनोवैज्ञानिकों ने अपने शोध अध्ययनों से यह सिद्ध कर दिया है कि बच्चे की बार-बार पिटाई से उसकी भलाई होने के बजाए उसका नुकसान ही होता है। बच्चा हमेशा डरा सहमा रहता है, जिससे उसके बौद्धिक विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। सही काम करने वाला बच्चा भी पिटाई के खौफ से तनाव मे अधिक से अधिक गलतियां करता जाता है। अपने माता - पिता के लिए उस बच्चें के मन में आदर का भाव नहीं रह जाता। वह उनके पास जाते हुए भी डरता है कि कहीं उसकी पिटाई न हो जाए। बडे़ होने पर यह अनादर भाव बदलें की भावना में परिवर्तित हो जाता है। 
मनोवैज्ञानिक हेरियट मैक्समिलन ने अपने पांच सहयोगियों के साथ काॅलेज मे अध्ययन करने वाले लगभग पांच हजार युवकों की प्रवृतियों का अध्ययन किया। अध्ययन से यह पता चला कि जिन युवकों की बचपन मेें पिटाई होती थी, उनमें से 21 प्रतिशत युवाओं में उग्रता के लक्षण पाए गए। 13 प्रतिशत शराब और नशीली दवाओं के आदी हो गए। 12 प्रतिशत अपराधी प्रवृति वाले, 10 प्रतिशत उम्र के हिसाब से कम बौद्धिक स्तर वालें तथा 9 प्रतिशत गंभीर मानसिक तनाव से ग्रस्त पाए गए। एक अन्य मनोवैज्ञानिक का कहना है कि अति किसी भी चीज की बुरी होती है, चाहे वह बच्चों के साथ अति प्यार की बात हो या मारपीट की, बच्चों के साथ हमेशा की जाने वाली डांट-डपट या मारपीट से बच्चा डरा सहमा रहता है। इस वजह से उसके काम में गलतियां अधिक से अधिक होती है जरूरी नहीं कि इसके परिणामस्वरूप बच्चें उग्र स्वभाव के ही होते है या कि गलत दिशा की ओर ही अग्रसर होते है। कई बार ऐसे बच्चें बिल्कुल चुप हो जाते हैं। वे दब्बू और डरपोक हो जाते है। उनका आत्मविश्वास समाप्त हो जाता है। उनकी निर्णय क्षमता तो प्रभावित होती है, साथ ही उनका बौद्धिक विकास भी रूक जाता है। कई बार बच्चें कुछ ऐसे कदम भी उठा लेते है, जिनकी हम कल्पना भी नहीं कर सकतें। मनोवैज्ञानिक कहते है कि पीटनें के बजाए बच्चों में पीटे जाने का भय होना चाहिए। मनोवैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि अपनी इच्छाओं को बच्चों पर पूरी थोपकर उन्हें प्रताडि़त करना उचित नहीं है। बच्चंे की पढ़ाई की कितनी क्षमता है, बच्चें का मानसिक विकास उस स्तर का है या नहीं, इस बात का पता लगाना बहुत जरूरी है।
अपने बच्चों की तुलना दूसरे बच्चों से करके उन्हे प्रताडि़त करना भी उचित नहीं है। 


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