मानवता की भलाई करने के लिए सेवारत होना चाहिए

Posted on 07-Jul-2016 11:31 AM




हर व्यक्ति को मानवमात्र की भलाई के लिए सेवारत होना चाहिए। लेकिन प्रश्न उठता है कि सेवा किसकी? ये प्रश्न जितना सरल लग रहा है उतना ही जटिल है। लौकिक दृष्टि से हम दूसरों की सेवा भले कर लें, किंतु पारमार्थिक क्षेत्र में? सबसे बड़ी सेवा अपनी ही हो सकती है। आध्यात्मिक दृष्टि से किसी अन्य की सेवा नही, अपितु स्वयं हम अपनी सेवा करते है। दूसरों का सहारा लेने वाले पर भगवान भी अनुग्रह नही करतें। सेवा करने वाला वास्तव में अपनेपन की वेदना मिटाता है। यानी अपनी ही सेवा करता है दूसरों की सेवा में अपनी सुख-शांति की भावना छिपी रहती है। कहा जाता है कि दीन-दुखियों की सेवा करके हम भगवान की सेवा करते है लेकिन यह अंतिम सत्य नहीं है। भगवान की सेवा आप क्या कर सकेंगे? वे तो निर्मल और निराकर बन चुके है। उनके समान निर्मल और निराकार बनना ही उनकी सच्ची सेवा है। हम शरीर की तड़पन तो देखने है, किंतु आत्मा की पीड़ा नहीं पहचान पाते। यदि शरीर में कोई रात को सुई चुभो दें, तो तत्काल हमारा पूरा ध्यान उसी स्थान पर केन्द्रित हो जाता है। हमें बड़ी वेदना महसूस होती है, किंतु आत्म-वेदना को आज तक अनुभव नहीं किया। शरीर की सरांध का हम इलाज करते है, किंतु अपने अंतर्मन की सराध को, उत्कट दुर्गंध को कभी असहृा माना ही नहीं।


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