क्यों न दुःखों का भी उल्लास मनाया जाए

Posted on 20-May-2015 01:52 PM




न तो कोई समय खराब होता है और न ही कोई परिस्थिति। न कोई स्थान खराब होता है और न ही कोई घटना। चाहे ये कितने भी खराब क्यों न हों, इन सभी में कोई न कोई गुणवत्ता छिपी ही रहती है। यदि समय कठिन है, यदि परिस्थितियाँ विपरीत हैं, तो वे हमें लड़ना सिखाकर मजबूत बनाती हैं।
सोचिए कि यदि भगवान राम को वनवास नहीं मिला होता और वे सिंहासन पर बैठ गए होते, तो क्या वे हमारे आराध्य बन पाते। सभी महापुरुष पहले हमारी तरह पुरुष ही थे। घटनाओं ने ही उन्हें ’महान्’ बनाया है।
आप और मैं यानी कि हम सभी प्रकृति के इसी नियम से बँधे हुए हैं। इसलिए दुःखों का रोना कैसा। क्यों न दुःखों का भी उल्लास मनाया जाए, उन्हें उत्सवों में बदल दिया जाए, क्योंकि कोई भी चीज ऐसी नहीं होती, जिसका सार्थक उपयोग न किया जा सके।


Leave a Comment:

Login to write comments.