विज्ञान के क्षेत्र में जे. सी. बोस का योगदान

Posted on 16-Jul-2015 02:52 PM




19वीं शताब्दी में जब भारत विभिन्न क्षेत्रों जैसे साहित्य और दर्शनशास्त्र आदि क्षेत्रों में अपना योगदान कर रहा था, लेकिन विज्ञान के क्षेत्र में योगदान लगभग नगण्य था। जगदीश चंद्र बोस पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने अपने आविष्कारों से स्वयं ही ख्याति अर्जित नहीं की, बल्कि भारत को भी विश्व के विज्ञान-मानचित्र पर स्थान दिलाया।

बोस का जन्म 30 नवंबर, 1858 में बंगाल (अब बांग्लादेश) के एक गांव में हुआ था। कलकत्ता विश्वविद्यालय से भौतिकी का अध्ययन करने के बाद आगे अध्ययन करने के लिए वे इंग्लैंड गए। 1884 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से उन्होंने स्नातक की उपाधि प्राप्त की। भारत वापस आने के बाद प्रेसीडेंसी कालेज, कलकत्ता में भौतिकी विज्ञान के प्रोफेसर नियुक्त किए गए। वे इस पद पर 1885 से 1915 तक रहे।

बचपन से ही बोस की जीवों और वनस्पतियों में गहरी रुचि थी। प्रोफेसर बनने के बाद उन्होंने अपने कार्य में इस क्षेत्र को प्राथमिकता दी। उन्होंने सर्वप्रथम यह अनुभव किया कि जीव और वनस्पति, दोनों में बहुत समानताएं होती हैं, लेकिन इस तथ्य को प्रमाणित करने का उनके पास कोई उपकरण नहीं था। उन्होंने बाल उद्दीपकों के प्रति जीवित वनस्पतियों की छोटी से छोटी प्रतिक्रिया जानने के लिए एक अत्यंत संदेदनशील मशीन का आविष्कार किया। इस उपकरण को क्रेस्कोग्राफ कहा गया। यह उपकरण वनस्पति के तंतुओं की मूल गति को दस हजार गुना बढ़ा देता था तथा वनस्पति के उर्वरक, शोर तथा अन्य उद्दीपकों के प्रति प्रतिक्रियाओं को अंकित कर सकता था। क्रेस्कोग्राफ से पता चला कि वनस्पति के पास विशेष बोध क्षमता होती है। वे प्रकाश किरणों तथा बेतार के तार के समानांतर प्रतिक्रिया करते हैं। वे अपने प्रति किसी विचित्र कार्यवाही के प्रति भी संवेदनशील होते हैं। इस यंत्र की सहायता से बोस ने जीवों तथा वनस्पतियों में कई समानताएं स्थापित की, जिन्हें बाद में जैव भौतिकी मशीनों द्वारा सिद्ध किया गया। उनके द्वारा विकसित इस उपकरण की 1900 में हुए पेरिस विज्ञान सम्मेलन में बहुत प्रशंसा की गई। जनसत्ता (16 नवंबर, 1977) में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका में इलेक्ट्राॅनिक्स और इलेक्ट्रिकल इंजीनियरों के संस्थान आई.ई.ई.ई. ने यह रहस्योद्घाटन किया कि रेडियो का आविष्कार इटली के जी.मारकोनी ने नहीं, भारत के महान वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस ने किया था।

1920 में बोस राॅयल सोसायटी के सदस्य चुने गए। बोस दो विश्व प्रसिद्ध पुस्तकों के लेखक भी हैं: ’रिस्पांस इन द लिविंग एंड नान-लिविंग’ और ’द नर्वस मैकेनिज्म आॅफ प्लांट्स’।बोस मानते थे कि भारतीयों में यूरोपियनों से कम प्रतिभा नहीं होती। उन्होंने सन् 1977 में कलकत्ता में बोस  इंस्टीट्यूट की स्थापना की। हमारे देश के इस महान वैज्ञानिक की मृत्यु 23 नवंबर, 1937 को हुई।


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