कई मौकों पर बेहतर होता है चुप रहना

Posted on 25-Jul-2016 11:58 AM




कितनी ही बार हम गुस्से, तनाव और दबाव की स्थितियों में अपने दोस्तों और अधीनस्थों को चुप रहने के लिए कहते हैं। यहाँ तक कि अपने बाॅस को भी मन की मन कोसने से नहीं चूकते। कितनी ही बार खुद भी यह कामना करते हैं कि काश अमुक समय पर हम चुप रह गए होते। शटअप का यह शब्द हमारी निजी और प्रोफेशनल जिंदगी से काफी गहराई से जुड़ गए है। यहाँ कुछ ऐसे ही मौके दिए गए हैं जहां स्थिति को ध्यान में रखते हुए चुप रहना अपने लिए अच्छा रहता है।

बाॅस से बातचीत: यह जरूरी नहीं कि आपका बाॅस हर समय सही हो पर उसके बावजूद बाॅस के कहने के तरीकों को समझकर कई बार चुप रहना बेहतर होता है। ऐसी स्थिति में कुछ समय बाद बाॅस के मूड को देखकर आप विषय को चतुराई के साथ पेश कर सकते हैं। यदि आपको अपने बाॅस के हठी स्वभाव के विषय में पहले से पता है तो बेहतर है कि आप दोबारा इसका जिक्र न करें। पर यदि आप विषय से बहुत अधिक असंतुष्ट हैं तो उच्च अधिकारी से बात कर सकते हैं, लेकिन यह जरूरी नहीं कि इसका सकारात्मक परिणाम ही हासिल हो।

बातूनी कर्मचारी: आपके आसपास कई ऐसे कर्मचारी होते हैं जो कि बहुत बोलते हैं। दूसरों की सुविधा के बारे में बिना सोचे अपनी ही बात बोलते रहते हैं। मीटिंग के बीच या व्यस्त समय में उनका यह स्वभाव कई बार झुंझलाहट उत्पन्न करने वाला या समय का दुरुपयोग साबित होता है। ऐसे सहकर्मियों को चुप रहने के लिए कहना हो सकता है कि आपको राहत प्रदान करे पर यह निश्चित ही उनकी नजरों में आपकी छवि को नकारात्मक बना देगा। यदि आपको लगता है कि ऐसे कर्मचारी अपनी सीमाओं से आगे जा रहे हैं, तो बेहतर है कि बातचीत को उस समय रोक दिया जाए या फिर आप कुछ समय के लिए वहां से हट जाएं। जब नहीं से काम न हो: कुछ लोग एक बार न कहने पर वह नहीं समझते। वह अपनी ही बात पर लगातार टिके रहते हैं। ऐसी स्थिति में दूसरे तरीके अपनाना बेहतर होता है। बजाय इसके कि आप उन्हें न कहें, बेहतर होगा कि आप विषय बदल दें।


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