सम्यक कर्म

Posted on 22-Apr-2015 03:35 PM




अभी स्वार्थ, उदासीनता, एवं इंद्रियासक्ति का जंग लग कर खराब हुए अपनी चेतना के पलने को साफ कर और प्रतिदिन के गहरे दिव्य ध्यान, आत्मनिरीक्षण और विवेचन के द्वारा उसे चमका कर, मैं सर्वव्यापी शिशु क्राइस्ट के आगमन की तैयारी करूँगा। मैं उस पलने का भ्रातृप्रेम, नम्रता, निष्ठा, ईश्वर-साक्षात्कार की इच्छा, इच्छा शक्ति, आत्म-संयम, वैराग्य, एवं निःस्वार्थ के देदीप्यमान आत्मिक गुणों के द्वारा नवीनीकरण करूँगा, ताकि मैं उचित रूप से उस दिव्य शिशु के जन्म के उत्सव को मना सकूँ।
-श्री श्री परमहंस योगानन्द


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