ज्ञानवाणी

Posted on 09-May-2015 02:15 PM




मैत्री
    मैत्री गुणवत्ता है न कि संबंध। इसका किसी दूसरे से कोई लेना-देना नहीं है। मौलिक रूप से यह तुम्हारी आंतरिक, योग्यता है। मैत्री एक तरह की खुशबू  है। जंगल में फूल खिलता है, कोई भी नहीं गुजरता... तब भी वह खुशबू बिखेरता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई जानता है या नहीं, यह उसका गुण है। संबंध मनुष्य या जानवर के साथ बन सकता है लेकिन मैत्री चट्टान के साथ, नदी, पहाड़, बादल के  साथ, दूर के तारों के साथ भी हो सकती है। मैत्री असीम है क्योंकि यह दूसरों पर निर्भर नहीं है। यह पूरी तरह से आपकी अपनी खिलावट है।
समझ
    समझ को पढ़ाया नहीं जा सकता, कोई तुम्हें यह सीखा नहीं सकता। तुम्हें स्वयं पर प्रकाश डालना होता है। तुम्हें अपनी चेतना में खोजना और ढूंढना होता है क्योंकि यह तुममें पहले से है। यदि तुम गहरा गोता लगाओं तो पा लोगे। तुम्हें यह सीखना होगा कि कैसे स्वयं के भीतर गहरा गोता लगाया जाए.. शास्त्रों में नहीं, बल्कि स्वयं के अपने अस्तित्व में। अपने मन में झांककर तुम खुद की खोज कर सकते हो।
तुलना
    तुलना रुग्णता है, बहुत बड़ी रुग्ण्ता। प्रारंभ से ही हमें तुलना करना सिखाया जाता है। शुरुआत से ही कहा गया है कि स्वयं की तुलना  दूसरों से करो। यह कैंसर की तरह है जो तुम्हारी आत्मा को नष्ट किए चला जाता है। प्रत्येक व्यक्ति अद्वितीय है और तुलना संभव नहीं है। मैं बस मैं हूं और तुम बस तुम। दुनिया में कोई नहीं है जिसके साथ तुलना की जाए। तुम्हारे जैसा व्यक्ति पहले कभी नहीं हुआ और ना फिर कभी होगा। तुम पूरी तरह से अद्वितीय हो। यह तुम्हारा विशेषाधिकार है, तुम्हारा खास हक है, जीवन का आशीर्वाद है.. कि इसने तुम्हें अद्वितीय बनाया।


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