चिंता करना बंद करें

Posted on 22-Jun-2016 02:20 PM




‘हम चिंता क्यों करते हैं’ इस विषय पर हृदयार्पित धवल का विश्लेषण और तनाव मुक्त जीवन जीने के तरीके के बारे उनके सुझाव। तनाव आधुनिक जीवन का एक हिस्सा बन गया है। कुछ मात्रा में तनाव निश्चित है। लेकिन जब चिंताएँ बढ़ने लगती हैं तो आपको उनका सामना करने की आवश्यकता है। आमतौर पर ऐसा देखा जाता है कि अधिक चिंताएं उन लोगों में ज्यादा देखने को मिलती है जिन्हें जीवन की चुनौतियों का सामना करने में परेशानी हो रही ळें किसी परीक्षा परिणाम की उलटी गिनती, साक्षात्कार का भय या सेंसेक्स का उतार-चढाव जो हमारे बैंक खाते में भूचाल ला देता है। ये कुछ ऐसी घटनाएँ है जो दिल की धड़कने बढ़ा देती हैं। हम में से अधिकांश लोगों में एक सामान्य डर समाया हुआ है- ‘तो क्या होगा’। मुझे नौकरी से निकाल दिया तो क्या होगा? यदि उन्हें मेरा भाषण पसंद नहीं आया तो क्या होगा? मैंने अपने सारे पैसे खो दिए तो क्या होगा? वह मुझसे प्यार नहीं करता होगा तो क्या होगा? इस तरह की अनिश्चितता और भय तनाव का कारण होती हैं जो समय के साथ साथ कम होती जाती हैं।

काल्पनिक भय - मुख्य रूप से चिंता के दो कारण होते हैं। पहले तरह के मामले में मन एक छोटी सी समस्या का सामना करते हुए सबसे खराब स्थिति में चला जाता है। यह एक विरोधाभासी स्थिति है। छोटे से तनाव से बचने के लिए एक व्यक्ति अपनी कल्पना के माध्यम से कई गुना अधिक तनावग्रस्त हो जाता है। इस प्रकार, एक मामूली सी चिंता बड़ी चिंता का कारण बन जाती है। चिंता का दूसरा कारण है अपने आप को अलग तरीके से पेश करना। किसी एक व्यक्ति के बुद्धिमान, ध्यान रखने वाला, निःस्वार्थी नहीं होने पर भी, उसकी ऐसे सुसज्जित व्यक्ति होने की चाहत हो सकती है। ऐसी छवि में बनकर रहना काफी तनाव पैदा कर सकता है। ‘होने’ के बजाय ‘दिखावे’ को ही शायद पूर्वाभासी चिंता कहा जाता है। ऐसे व्यक्तियों को हमेशा इस बात का भय रहता है कि एक दिन कोई न कोई उसके इस चेहरे से झूठ का मुखौटा उठा देगा और लोगों को इस बात का पता चल जाएगा कि जैसा रूप उसने धारण किया है यह सब फरेब है। अपने आप को स्वीकार करने की बजाय वह अपने मुखौटे की रक्षा करने में ही अपनी भलाई समझता है। ऐसा कर वह अपने ऊपर सतर्कता का बोझ बढ़ा देता है।

शारीरिक और भावनात्मक प्रभाव - कोई फर्क नहीं पड़ता है कि चिंता का कारण क्या है, अंतिम परिणाम शरीर और मन को नुकसान जरूर पहुँचाता है। चिंता से अकसर होने वाले साइनस, सिर दर्द, अनिद्रा, पेट संबंधी समस्याएँ और दिल का दौरा पड़ने की भी संभावना होती है और साथ ही इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कमजोर हो जाती है। भावनात्मक रूप से, निरंतर चिंता सकारात्मक कल्पनाशील और रचनात्मक होने की बजाय नकारात्मकता पैदा करती है कृचिंता से व्यक्ति असुरक्षित तनावग्रस्त और दुखी हो जाता है।


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