संचय की प्रवृत्ति से बचना ही श्रेयस्कर है - भगवान बुद्ध

Posted on 03-Jul-2015 11:49 AM




भगवान बुद्ध प्रवृज्या पर निकले हुए थे। एक स्थान पर वे विश्राम करने के लिए रुके तो अपने साथ आ रहे भिक्षुओं को देखकर चिंता में पड़ गए। उनका अंतिम पड़ाव एक राजप्रासाद में था, जहाँ राजा ने सभी भिक्षुओं को बहुत से वस्त्र उपहार में दिए थे, जिन्हें सारे भिक्षु सिर पर गठरी के समान उठाए चल रहे थे। भिक्षुओं की इस संचयवृत्ति को देखकर भगवान बुद्ध को अत्यंत चिंता हुई।

भगवान बुद्ध ने सभी भिक्षुओं से पूछा -”भंते! एक मनुष्य को ग्रीष्मकाल में कितने चीवरों (ओढ़ने वाला वस्त्र) की आवश्यकता है ?“ भिक्षुओं ने उत्तर दिया-”प्रभु! ग्रीष्मकाल में एक चीवर पर्याप्त है।“ भगवान बुद्ध ने यही प्रश्न वर्षाकाल के संदर्भ में पूछा तो उन्हें उत्तर मिल कि उस समय दो चीवर मनुष्य की आवश्यकतापूर्ति के लिए बहुत हैं। 

फिर भगवान बुद्ध ने प्रश्न किया-”शीतकाल में कितने चीवरों की आवश्यकता होगी ?“ सभी भिक्षुओं ने उत्तर दिया-”भगवान्! तीन से ज्यादा चीवरों की आवश्यकता नहीं है।“ भगवान बुद्ध ने भिक्षुओं को इतने ही वस्त्र साथ रखने के लिए कहा और यह निर्देश दिया कि इससे ज्यादा का संग्रह कष्ट का कारण बनता हैै और ऐसी संचय की प्रवृत्ति से बचना ही श्रेयस्कर है।


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