एक बड़ी बुराई है - भय

Posted on 27-Apr-2015 05:46 PM




मित्रों, अब मैं आपसे उस एक भावमय के बारे में चर्चा करने जा रहा हूँ, जिसके बारे में मुझे लगता है कि वह हमारी सारी क्षमताओं को, हमारी दिव्य-शक्तियों को दीमक की तरह चाटकर हमंे अंदर से खोखला कर देता है। शायद इसके बारे में अभी तक गहराई से बात भी नहीं हुई है। हाँ, सतही तौर पर ज़रूर हमसे रोज इसके बारे में कुछ-न-कुछ कहा जाता है।
कभी-कभी मुझे लगता है कि शायद लोभ, ईष्र्या औेर घृणा जैसी बुराइयाँ इतनी बड़ी बुराइयाँ नहीं हैं, जितनी बड़ी बुराई है - भय। निश्चित रूप से लाभ और ईष्र्या जैसे भाव व्यक्ति को उसके स्तर से कई गुना नीचे गिरा देते हैं। लोभ उसे निष्कृष्ट बना देता है। ईष्र्या उसे घटिया बना देती है, यहाँ तक कि राक्षस भी। लेकिन भय तो कहीं का भी नहीं छोड़ता। यदि अंदर भय है तो फिर चाहे अन्य कितने भी श्रेष्ठ भाव किसी के अंदर क्यों न हों, वे नहीं के बराबर हो जाते हैं। जबकि दूसरे निष्कृष्ट भावों का तालमेल उत्कृष्ट भावों के साथ बैठ जाता है। एक व्यक्ति लोभी होकर परमार्थी , उदार भी हो सकता है। एक व्यक्ति ईष्र्यालु होकर विद्वान भी हो सकता है। एक व्यक्ति कामुक होकर दार्शनिक भी हो सकता है। लेकिन भयभीत व्यक्ति कुछ भी नहीं हो सकता । भय अपने आपमें ही व्यक्ति के अंदर का इतना सारा स्थान घेर लेता है कि वह दूसरे किसी भाव के लिए जगह ही नहीं छोड़ता, फिर चाहे वह दूसरा भाव कितना ही शक्तिशाली और बड़ा क्यों न हो।


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