कन्या भ्रूण हत्या: लिंग-भेद का विद्रूप

Posted on 03-Jun-2015 04:37 PM




विधाता की इस सुन्दर सृष्टि के संचालक नर-नारी हैं। इन्हीं के सहयोग से सृष्टि की प्रक्रिया आगे बढ़ती है। लेकिन जैसे-जैसे विधाता की सृष्टि का यह प्रिय ज्ञानवान प्राणी सभ्य होता जा रहा है, इसकी बौद्धिकता में परिवर्तन आता जा रहा है। स्वार्थ के कारण इसकी सोच में संकीर्णता पूरी तरह से समा गयी है। सन्तान तो चाहता है लेकिन लड़की नहीं लड़का, क्योंकि उसका मानना है कि नाम करेगा रोशन जग में राज दुलारा। लड़की का पालन-पोषण करना, पढ़ाना और उसकी शादी में दहेज देना ये सब बातें धन की बर्बादी नहीं तो क्या है? इन्हीं आधारों पर उसकी सोच बदल गयी है। पुत्र को ही कुल-परम्परा बढ़ाने वाला तथा वृद्धावस्था का सहारा मानकर कुछ लोग कन्या-जन्म नहीं चाहते हैं। इसलिए आज के यान्त्रिक युग में भ्रूण हत्या के द्वारा कन्या-जन्म को पहले ही रोक दिया जाता है और भ्रूण-हत्या में शिक्षित नारी भी नर का साथ देती है। यह विचारणीय प्रश्न है।

में भ्रूण हत्या के द्वारा कन्या-जन्म को पहले ही रोक दिया जाता है और भ्रूण-हत्या में शिक्षित नारी भी नर का साथ देती है। यह विचारणीय प्रश्न है।
    वर्तमान में अल्ट्रसाउण्ड मशीन कन्या-संहार का हथियार बन गयी है। इसी मशीन की सहायता से लिंग-भेद ज्ञात कर लिया जाता है और गर्भ में पल रही कन्या को दुनिया में आने से पूर्व ही मार दिया जाता है। यह सोच है आज के शिक्षित आदमी की जो अपने आप को जनक कहलवाने में गर्व का अनुभव करता है और माँ जो केवल माता की मूर्ति होती है वह कैसे कठोर बनकर जनक का साथ देती है। यह सोचने की बात है। जिस माता ने उसे जन्म दिया वही अपनी कन्या को जन्म देने से इतनी निर्मम कैसे बन जाती है। उसकी ममता कैसे सूख जाती है? यह उसके लिए ही नहीं, समस्त नारी जाति के लिए उसके सामने पहला प्रश्न है, जबकि संविधान ने दोनों को समान अधिकार प्रदान किए हैं। विचारणीय बात यह भी है कि शिक्षित व्यक्ति ही समाज का अग्रपुरूष कहलाता है। उसका समाज इसीलिए सम्मान करता है कि वह चिकित्सक है। ऐसा पुरूष जो जीवन की रक्षा करता हो वही चन्द पैसों के लोभ में आकर ऐसा असंवेदनशील, घृणास्पद पाप करे। इससे बड़ी हास्यास्पद स्थिति और कौनसी हो सकती है? यह सोचनीय प्रश्न है। क्या पैसा ही उसके लिए सबकुछ है? इसके अलावा कुछ भी नहीं है। यह देखकर ऐसा लगने लगता है कि मानो मानवीय संवेदनाएँ उसके लिए खत्म हो चुकी हों।
    आज इसी स्थिति और मानसिकता के कारण लिंगानुपात का सन्तुलन बिगड़ गया है। कई राज्यों में लड़कों की अपेक्षा लड़कियों की संख्या पन्द्रह से पच्चीस प्रतिशत कम है। एक सर्वेक्षण के अनुसार हमारे देश में प्रतिदिन लगभग तीस हजार कन्या-भ्रूणों की हत्या की जाती है। हरियाणा, पंजाब तथा दिल्ली में इसकी विद्रूपता सर्वाधिक दिखाई देती है। इसे रोकने के लिए कठोर दण्ड का विधान किया गया है। अब देखना यह है कि अपने आप को खुदा समझने वाले यह नर-नारी कब अपनी सोच में बदलाव लाते हैं?


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