देने का सुख

Posted on 12-Jun-2015 02:02 PM




स्वामी रामतीर्थ के जीवन की एक घटना है। भ्रमण एवं भाषणों से परिश्रांत स्वामी जी अपने निवास पर लौटकर- थोड़ा सा ही आटा था उसकी रोटियाँ बना रहे थे, चूंकि वे अपना भोजन स्वयं बनाते थे। जब वेे थाली लगाकर भोजन करने के लिए बैठने लगे तभी कुछ भूखें बच्चें आकर खड़े हो गये। स्वामी जी ने अपनी सारी रोटियाँ एक-एक करके बच्चों में बांट दी। पड़ोस में बाहर बैैठी एक महिला ने पूछा- अब आप स्वयं क्या खायेंगे ?
स्वामी ने मुस्कुराकर कहा -”माता रोटी तो पेट की ज्वाला शांत करने वाली वस्तु है, यदि इस पेट की नहीं तो उस पेट की, क्या फर्क पड़ता है।“ देने का आनन्द, पाने के आनन्द से बड़ा होता है।


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