परमात्मा ने जो हमें दिया है उसके प्रति कृतज्ञ होवें

Posted on 11-May-2015 11:52 AM




एक साधु था, जो नियमित रूप से प्रवचन किया करता था। एक बार प्रवचन के अन्त में सृष्टि के प्रति आभारी होने की बात कह रहा थाः ”आभार की स्थिति से कार्य करें, कृतज्ञ होएं, यह हमारा प्रसार करेगा।“ एक भिखारी कोने में बैठकर उनके प्रवचन को सुन रहा था। 
प्रवचन के बाद वह साधु के पास आया और बोला, ”आपका भाषण बहुत अच्छा था। पर एक बात मैं नहीं कर पा रहा। आपने कहा कि हम सृष्टि के प्रति कृतज्ञ हों, क्योंकि इसने हम पर अपने आशीर्वाद और मंगल की वृष्टि की है, पर मैं बहुत दुख के साथ कह रहा हूं कि सृष्टि ने मुझे कुछ नहीं दिया। मैं अभी भी एक रोटी के लिए संघर्ष कर रहा हूँ।“
साधु ने कहा, ”मैं मानता हूँूं, तो मैं तुम्हें अभी दो लाख रुपए देता हूँूं, क्या तुम कृतज्ञ होओगे ?“ भिखारी बहुत प्रसन्न हुआ। ”पर मैं बदले में कुछ लेना चाहूंगा,“ साधु ने कहा। ”मेरे पास कुछ नहीं है, जो मैं दे सकंू। अगर मेरे पास कुछ है, तो मैं अवश्य दूंगा,“ भिखारी बोेेला। ”मैं ऐसी चीज़ नहीं मांगूंगा, जो तुम्हारे पास नहीं है,“ साधु ने कहा। दोनों के बीच समझौता हो गया।
साधु ने कहा, ”मैं तुम्हारे लिए दो लाख की व्यवस्था करता हूँूं, तुम कृपया मुझे अपनी दोनोें आंखें दे दो।“ भिखारी हैरान हो गया, ”अपनी आंखों के बिना मैं इन दो लाख रुपयों का क्या करूंगा। मुझे यह सौदा मंजूर नहीं है।“ उसने कहा, ”दो लाख के बजाय मुझे मेरी आंखें अधिक क़ीमती हैं।“ साधु ने कहा, ”पर तुमने तो कहा था कि तुम्हारे पास कुछ नहीं है और तुम सृष्टि की निन्दा कर रहे थे।“
यह एक बहुत सुन्दर कहानी है। उसके पास दो आंखें, दो हाथ, दो पैर, पेट आदि सब था। वह पहले से ही करोड़पति था। पर ये सारे उपहार हम नहीं देखते। उस भिखारी के लिए धन महत्त्वपूर्ण था। 


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