‘होनहार बिरवान के होत चिकने पात’

Posted on 21-May-2015 12:57 PM




‘‘ओ बेटे - ‘‘कल तो तूने पांच रूपये मांगे थे, और आज फिर पांच रूपये मांग रहा है।’’
‘‘हां पिता जी, वे सब खर्च हो गये। आज और दे दीजिये। अब चार दिन तक एक पैसा भी नहीं मागूंगा।’’
पिता ने फिर से पांच रूपये तो दे दिए, पर अपने एक विश्वस्त नौकर को समझा भी दिया कि जब यह बच्चा जाने को निकले तब तूं इसके पीछे-पीछे चलना, और देखना आखिर यह क्या क्या खरीदता है?
घर से थोड़ी दूर पर बालक ने एक कच्चे मकान से एक दोस्त को बुलाया। दोनों पुस्तक बेचने वाले की दुकान पर गये, और उसे पांच रूपये की पुस्तकें दिलवा कर बोला - ‘‘कल की, आज की इन दस रूपयों की पुस्तकों से तेरा पढ़ाई का काम बन जायेगा।’’ यही बालक बड़ा होने पर देशबन्धु चितरंजन दास के नाम से विख्यात हुआ।


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