तेज रफ्तार में छूट न जाएं खूबसूरत पल

Posted on 21-May-2015 12:06 PM




जनवरी की एक सर्द सुबह। अमेरिका के वाॅशिंगटन डीसी का मैट्रो स्टेशन। एक आदमी वहां करीब घंटा भर तक वायलिन बजाता रहा। इस दौरान लगभग 2000 लोग वहां से गुजरे, अधिकतर लोग अपने काम से जा रहे थे। उस व्यक्ति ने वायलिन बजाना शुरू किया। उसके तीन मिनट बाद एक अधेड आदमी का ध्यान उसकी तरफ गया। उसकी चाल धीमी हुई और वह कुछ पल रूका और फिर जल्दी से निकल गया। 4 मिनट बाद, वायलिन वादक को पहला सिक्का मिला। एक महिला ने उसकी टोपी में सिक्का डाला और बिना रूके चलती बनी।
6 मिनट बाद, एक युवक कुछ देर उसे सुनता रहा, फिर घड़ी पर नजर डाली और आगे चला गया। 10 मिनट बाद, एक 3 वर्षीय बालक वहां रूक गया, पर जल्दी में दिख रही उसकी मां उसे खींचते हुए ले गयी। वह बच्चा मुड़-मुड़कर वायलिन बादक को देख रहा था। ऐसा ही कई बच्चों ने किया, पर अभिभावक घसीटते ले गये। 45 मिनट बाद, वह अभी भी बजा रहा था, अब तक केवल छः लोग ही रूके थे। उन्होंने भी कुछ देर ही उसे सुना। लगभग 20 लोगों ने सिक्का उछाला, पर रूके बगैर सामान्य चाल में चलते रहे। वादक को कुल् 32 डाॅलर मिले। 1 घंटे बाद, उसने वादन बंद किया। शांति छा गयी। इस बदलाव पर भी किसी ने ध्यान नहीं दिया। किसी ने वादक की तारीफ नहीं की। किसी भी व्यक्ति ने उसे नहीं पहचाना। वह था विश्व के महान वायलिन वादकों में से एक, जोशुआ बेल। जोशुआ 16 करोड़ रूपए के अपने वायलिन से इतिहास की सबसे कठिन धुन बजा रहे थे। महज दो दिन पहले ही उन्होंने बोस्टन शहर में मंचीय प्रस्तुति दी थी, जहां प्रवेश टिकटों का औसत मूल्य 100 डाॅलर था। यह सच्ची घटना है। जोशुआ बेल एक प्रतिष्ठित समाचार पत्र द्वारा ग्रहणबोध और समझ को लेकर किये गए एक सामाजिक प्रयोग का हिस्सा बने थे। इसका उद्देश्य यह पता लगाना था कि किसी सार्वजनिक जगह पर किसी अटपटे समय में हम खास चीजों पर कितना ध्यान देते हैं? क्या आम अवसरों पर प्रतिभा की पहचान कर पाते हैं? सोचिए, जब दुनिया का एक श्रेष्ठ वादक बेहतरीन साज से इतिहास की कठिन धुनों में से एक बजा रहा था, तब अगर किसी के पास इतना समय नहीं था कि कुछ पल रूककर उसे सुने, तो सोचें कि हम कितनी सारी अन्य बातों से वंचित हो गये हैं, वंचित हो रहे हैं। इसका जिममेदार कौन हैं?

 


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