हाथी और किसान का साझा

Posted on 16-Apr-2015 02:29 PM




किसान को खेती की हर बारीकी के बारे में मालूम था, लेकिन फिर भी डरा दिए जाने के कारण वह अकेला खेती करने का साहस न जुटा पाता था। इससे पहले वह शेर, चीते और मगरमच्छ के साथ साझे की खेती कर चुका था, अब उससे हाथी ने कहा कि अब वह उसके साथ साझे की खेती करे। किसान ने उसको बताया कि साझे में उसका कभी गुजारा नहीं होता और अकेले वह खेती कर नहीं सकता। इसलिए वह खेती करेगा ही नहीं। हाथी ने उसे बहुत देर तक पट्टी पढ़ाई और यह भी कहा कि उसके साथ साझे की खेती करने से यह लाभ होगा कि जंगल के छोटे-छोटे जानवर खेतों को नुकसान नहीं पहुँचा सकेंगे और खेती की अच्छी रखवाली हो जाएगी।

किसान किसी न किसी तरह तैयार हो गया और उसने हाथी से मिलकर साझे में गन्ना बोया।
हाथी पूरे जंगल में घूमकर डुग्गी पीट आया कि गन्ने में उसका साझा है इसलिए कोई जानवर खेत को नुकसान न पहुँचाए, नहीं तो अच्छा न होगा।
किसान फसल की सेवा करता रहा और समय पर जब गन्ने तैयार हो गए तो वह हाथी को खेत पर बुला लाया। किसान चाहता था कि फसल आधी-आधी बाँट ली जाए। जब उसने हाथी के यह बात कही तो हाथी काफी बिगड़ा।
हाथी ने कहा, ‘‘अपने और पराए की बात मत करो। यह छोटी बात है। हम दोनों ने मिलकर मेहनत की थी हम दोनों उसके स्वामी हैं। आओ, हम मिलकर गन्ने खाएँ।’’
किसान के कुछ कहने से पहले ही हाथी ने बढ़कर अपनी सूँड से एक गन्ना तोड़ लिया और आदमी से कहा, ‘‘आओ खाएँ।’’
गन्ने का एक छोर हाथी की सूँड में था और दूसरा आदमी के मुँह में। गन्ने के साथ-साथ आदमी हाथी के मुँह की तरफ खींचने लगा तो उसने गन्ना छोड़ दिया।
हाथी ने कहा, ‘‘देखो, हमने एक गन्ना खा लिया।’’
इसी तरह हाथी और आदमी के बीच साझे की खेती बँट गई।

 


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