शत्रु की सलाह

Posted on 24-Apr-2015 11:36 AM




किसी वन में एक बरगद का पेड़ था। उस पर बहुत से बगुले रहते थे। उसके कोटर में एक काला साँप रहता था। वह बगुलों के बच्चों को पंख निकलने से पहले ही खा जाया करता था। उसके दिन इसी तरह गुजर रहे थे।
एक बगुला उस साँप के द्वारा खाए गए अपने बच्चों को देखकर खिन्नता से भर गया। वह तालाब के किनारे सिर झुकाकर बैठ गया और जार-बेजार रोने लगा। उसकी यह दशा देखकर एक केंकड़े ने पूछा,‘‘मामा, आप इस तरह रो क्यों रहे हैं?
बगुला बोला,‘‘ भाई, क्या करूँ, मुझ अभागे के बच्चों को कोटर में रहने वाला काला साँप खा जाया करता है। उसी दुःख से कातर होकर रो रहा हूँ। यदि उसके विनाश का कोई उपाय हो तो बताओ।‘‘ यह सुनकर केंकड़ा सोचने लगा,‘‘यह तो हमारे कुल का जन्मजात वैरी है। इसे ऐसा उल्टा पाठ पढ़ाऊँगा कि इसकी जाति ही खत्म हो जाए। कहते हैं, शत्रु को उपदेश देना हो तो वाणी को मक्खन जैसा और चित्त को निर्मम बनाकर ऐसी पट्टी पढ़ानी चाहिए कि वह तो वह, उसके पूरे खानदान का नाम निशान मिट जाए।‘‘
यह सोचकर वह बोला,‘‘ मामा, यदि ऐसी बात है तो आप नेवले के बिल से लेकर साँप के कोटर तक जगह-जगह मछली का मांस छितरा दो जिससे नेवला उसी रास्ते से जाकर साँप का सफाया कर दे।‘‘
बगुले ने ऐसा ही किया। इसके बाद नेवले ने पहले तो काले साँप को खत्म किया फिर धीरे-धीरे पूरी बगुला जाति को चट कर गया।
सीखः- शत्रु को नष्ट करने का उपाय जरूर सोचना चाहिए किन्तु उपाय से होने वाले खतरों से भी सावधान रहना चाहिए।


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