आशीर्वाद का मर्म

Posted on 13-May-2015 12:06 PM




गुरु नानक एक बार घूमते-घूमते एक गाँव में ठहरे। वहाँ के लोगों ने सूब स्वागत किया, उपदेश सुने। सज्जनता की मूर्ति थे वे सब। नानक ने आशीर्वाद दिया-’उजड़ जाओ।’
दूसरे एक गाँव में गए। वहाँ के लोगों ने अपमानित किया। दुव्र्यवहार किया। नानक ने कहा-’आबाद रहो।’ शिष्यों के पूूछने पर विचित्र आशीर्वाद का मर्म बताया कि सज्जन उजडें़गे, अन्य स्थानों पर जायेंगे तो सज्जनता का प्रसार करेंगे। दुर्जन एक ही जगह रहेंगे तो यह कलुष सीमित रहेगा।


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