सच्ची पारिवारिकता

Posted on 23-May-2015 03:01 PM




तीन दिन से पत्नी और बच्चों को भोजन न मिला था। गृह स्वामी प्रयत्न करने पर भी एक समय का भोजन न जुटा सका अन्ततः वह निराश हो गया, उसे अपना जीवन बेकार लगने लगा। वह अपने घर से चला गया और आत्महत्या करने की तैयारी पर विचार करने लगा। कुछ ही क्षण के बाद वह व्यक्ति संसार से विदा होने को था।
पीछे से किसी ने कन्धे पर हाथ रखते हुए कहा - ‘‘मित्र! इस मूल्यवान जीवन को खोकर तुम्हें क्या मिलेगा? निराश होने से कोई लाभ नहीं। तुम्हारे जीवन में आई हुई विपत्तियां ऐसे करने के लिए विवश कर रही है। पर क्या तुम इन विपत्तियों को हंसते - हंसते नहीं धकेल सकते?
आत्मीयता से परिपूर्ण शब्दों को सुनकर वह युवक रो पड़ा। सिसकियां भरकर अपनी मजबूरी की सारी कहानी सुना दी। अब तो सुनने वाले व्यक्ति की आंखो में भी आंसू थे।
उस युवक की परेशानियों ने भावुक व्यक्तियों को प्रभावित किया। उससे हमने वहीं संकल्प किया कि अपनी कमाई का अधिक से अधिक भाग उन व्यक्तियों की सेवाओं में लगाया जायेगा जो अभावग्रस्त है। उस समय कविशिनीची ने चुवक के परिवार की भोजन की व्यवस्था हेतु कुछ धनराशि दे दी, पर घर लौटकर उसने गुप्तदान पेटी बनवाई और चैराहे पर लगवा दी। जिन सज्जनों को सचमुच धन की आवश्यकता हो, वह इस पेटी से निकाल कर अपना काम चला सकते है। वह धन अभावग्रस्त व्यक्तियों की सहायता में लगा। विश्व बन्धुत्व जिनका लक्ष्य हो, वे कभी नाम कमाने की इच्छा नहीं रखते। पर दुःख कातरता का यह गुण ही उन्हें महामानव का पद दिलाता है।


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